अधिकार पहेलो
पीLबंधा प्ररुपक
ग्रंथकर्तानुं मंगलाचरण
मंगलमय मंगल करण, वीतराग विज्ञान,
नमो तेह जेथी थया, अरहंतादि महान;
करी मंगल करूं छुं महा, ग्रंथकरण शुभ काज,
जेथी मळे समाज सर्व, पामे निजपद राज.
हवे श्री मोक्षमार्गप्रकाशक नामना ग्रंथनो उदय थाय छे, त्यां प्रथम ग्रंथकर्ता मंगलाचरण
करे छे.
णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं;
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं।
आ प्राकृतभाषामय नमस्कार मंत्र छे ते महामंगलस्वरूप छे, तेनुं संस्कृत नीचे प्रमाणे
थाय छेः —
नमोऽर्हद्भ्यः। नमः सिद्धेभ्यः, नमः आचार्येभ्यः, नमः उपाध्यायेभ्यः, नमः लोके सर्वसाधुभ्यः।
श्री अरिहंतने नमस्कार हो, सिद्धने नमस्कार हो, आचार्यने नमस्कार हो, उपाध्यायने
नमस्कार हो अने लोकमां रहेला सर्व साधुओने नमस्कार हो. ए प्रमाणे तेमां नमस्कार कर्या
छे तेथी तेनुं नाम नमस्कार मंत्र छे.
हवे अहीं जेने नमस्कार कर्या छे तेनुं स्वरूप चिन्तवन करीए छीए, कारण के स्वरूप
जाण्या विना ए नथी समजातुं के हुं कोने नमस्कार करुं छुं? अने ते सिवाय उत्तम फलनी
प्राप्ति पण क्यांथी थाय?
✾ अरिहंतनुं स्वरुप ✾
त्यां प्रथम अरिहंतनुं स्वरूप विचारीए छीए. जे गृहस्थपणुं छोडी, मुनिधर्म अंगीकार
करी, निजस्वभाव साधन वडे चार घातिकर्मोनो क्षय करी अनंत चतुष्टयरूपे बिराजमान थया
छे, त्यां अनंतज्ञान वडे तो पोतपोताना अनंत गुणपर्याय सहित समस्त जीवादि द्रव्योने युगपत्
विशेषपणाए करी प्रत्यक्ष जाणे छे, अनंतदर्शन वडे तेने सामान्यपणे अवलोके छे, अनंतवीर्य
वडे एवा उपर्युक्त सामर्थ्यने धारे छे तथा अनंत सुख वडे निराकुल परमानंदने अनुभवे छे.
२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक