Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Shree Siddha Parmesthinu Swaroop Acharya, Upadhyay Ane Sadhunu Swaroop.

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वळी जे सर्वथा सर्व राग-द्वेषादि विकारभावोथी रहित थई शांतरसरूप परिणम्या छे, क्षुधा-
तृषादि समस्त दोषोथी मुक्त थई देवाधिदेवपणाने प्राप्त थया छे, आयुध अंबरादि वा अंग
विकारादिक जे काम
क्रोधादि निंद्य भावोनां चिह्न छे तेथी रहित जेनुं परमौदारिक शरीर थयुं
छे, जेना वचनवडे लोकमां धर्मतीर्थ प्रवर्ते छे, जे वडे अन्य जीवोनुं कल्याण थाय छे, अन्य
लौकिक जीवोने प्रभुत्व मानवाना कारणरूप अनेक अतिशय तथा नाना प्रकारना वैभवनुं जेने
संयुक्तपणुं होय छे, तथा जेने पोताना हितने अर्थे श्रीगणधर
इन्द्रादिक उत्तम जीवो सेवन करे
छे एवा सर्व प्रकारे पूजवा योग्य श्री अरिहंतदेवने अमारा नमस्कार हो.
श्री सिद्ध परमेÌीनुं स्वरुप
हवे श्री सिद्ध परमेष्ठीनुं स्वरूप ध्याईए छीए. जे गृहस्थ अवस्था तजी मुनिधर्म साधन
वडे चार घातिकर्मोनो नाश थतां अनंत चतुष्टय स्वभाव प्रगट करी केटलोक काळ वीत्ये चार
अघातिकर्मोनी पण भस्म थतां परमौदारिक शरीरने पण छोडी ऊर्घ्वगमन स्वभावथी लोकना
अग्रभागमां जई बिराजमान थया छे, त्यां जेने संपूर्ण परद्रव्योनो संबंध छूटवाथी मुक्त
अवस्थानी सिद्धि थई छे; चरम (अंतिम) शरीरथी किंचित् न्यून पुरुषआकारवत् जेना
आत्मप्रदेशोनो आकार अवस्थित थयो छे, प्रतिपक्षी कर्मोनो नाश थवाथी समस्त सम्यक्त्व-
ज्ञानदर्शनादिक आत्मिक गुणो जेने संपूर्णपणे पोताना स्वभावने प्राप्त थया छे, नोकर्मनो संबंध
दूर थवाथी जेने समस्त अमूर्तत्वादिक आत्मिक धर्मो प्रगट थया छे, जेने भावकर्मोनो अभाव
थवाथी निराकुल आनंदमय शुद्ध स्वभावरूप परिणमन थई रह्युं छे, जेना ध्यान वडे भव्य जीवोने
स्वद्रव्य
परद्रव्य, उपाधिक भाव तथा स्वाभाविक भावनुं विज्ञान थाय छे; जे वडे पोताने सिद्ध
समान थवानुं साधन थाय छे. तेथी साधवा योग्य पोतानुं शुद्ध स्वरूप तेने दर्शाववा माटे जे
प्रतिबिंब समान छे तथा जे कृतकृत्य थया छे तेथी ए ज प्रमाणे अनंतकाळ पर्यंत रहे छे एवी
निष्पन्नताने पामेला श्री सिद्ध भगवानने अमारा नमस्कार हो.
आचार्य, उपाधयाय अने साधाुनुं स्वरुप
हवे आचार्य, उपाध्याय अने साधुनुं स्वरूप अवलोकीए छीए.
जे विरागी बनी समस्त परिग्रह छोडी शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्म अंगीकार करी
अंतरंगमां तो ए शुद्धोपयोग वडे पोते पोताने अनुभवे छे, परद्रव्यमां अहंबुद्धि धारता नथी,
पोताना ज्ञानादिक स्वभावोने ज पोताना माने छे, परभावोमां ममत्व करता नथी, परद्रव्य वा
तेना स्वभावो ज्ञानमां प्रतिभासे छे तेने जाणे छे तो खरा, परंतु इष्ट
अनिष्ट मानी तेमां राग-
द्वेष करता नथी, शरीरनी अनेक अवस्था थाय छेबाह्य अनेक प्रकारनां निमित्त बने छे परंतु
त्यां कंईपण सुख-दुःख जे मानता नथी, वळी पोताने योग्य बाह्यक्रिया जेम बने छे तेम बने
प्रथम अधिकारः पीठबंध प्ररूपक ][ ३