ते जयवंत रहो सदा, एही ज मोक्ष उपाव.
करवानो ज निरंतर उपाय पण रहे छे, परंतु खरो उपाय पाम्या विना ते दुःख दूर थतुं नथी
तथा सह्युं पण जतुं नथी अने तेथी ज आ जीव व्याकुल थई रह्यो छे. ए प्रमाणे जीवने समस्त
दुःखनुं मूळ कारण कर्मबंधन छे, तेना अभावरूप मोक्ष छे अने ए ज परम हित छे. वळी
साचो उपाय करवो ए ज कर्तव्य छे माटे तेनो ज अहीं तेने उपदेश आपीए छीए. हवे जेम
वैद्य रोग सहित मनुष्यने प्रथम तो रोगनुं निदान बतावे के
मने एवो ज रोग छे. वळी ए रोगने दूर करवानो उपाय अनेक प्रकारे बतावे अने ए उपायनी
तेने प्रतीति अणावे एटलुं तो वैद्यनुं काम छे तथा जो ते रोगी तेनुं साधन करे तो रोगथी
मुक्त थई पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते; ए रोगीनुं कर्तव्य छे. ए ज प्रमाणे अहीं कर्मबंधनयुक्त
जीवने प्रथम तो कर्मबंधननुं निदान दर्शावीए छीए के
थाय के मने ए ज प्रमाणे कर्मबंधन छे. तथा ए कर्मबंधनथी दूर थवानो उपाय अनेक प्रकारे
बतावीए छीए अने ते उपायनी तेने प्रतीति अणावीए छीए; एटलो तो शास्त्रनो उपदेश छे.
हवे आ जीव तेनुं साधन करे तो कर्मबंधनथी मुक्त थई पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते, ए जीवनुं
कर्तव्य छे.
कर्मबंधन होवाथी नाना प्रकारना औपाधिकभावोमां जीवने परिभ्रमणपणुं होय छे, पण
अवस्थामां अनन्तानन्त जीवद्रव्य छे. तेओ अनादिथी ज कर्मबंधन सहित छे. पण एम नथी