Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Adhikar Bijo Sansar-avastha Niroopan Karmabandhan Roganu Nidan Karmano Sambandha Anadikalathi Chhe.

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अधिकार बीजो
संसार-अवस्था निरुपण
कर्मबंधान रोगनुं निदान
मिथ्याभाव अभावथी, जे प्रगटे निजभाव,
ते जयवंत रहो सदा, एही ज मोक्ष उपाव.
हवे आ ग्रंथमां मोक्षमार्गनो प्रकाश करीए छीए. त्यां बंधनथी छूटवुं तेनुं नाम मोक्ष
छे. आ आत्माने अनादिकाळथी कर्मबंधन छे, ते बंधन वडे दुःखी थई रह्यो छे. दुःख दूर
करवानो ज निरंतर उपाय पण रहे छे, परंतु खरो उपाय पाम्या विना ते दुःख दूर थतुं नथी
तथा सह्युं पण जतुं नथी अने तेथी ज आ जीव व्याकुल थई रह्यो छे. ए प्रमाणे जीवने समस्त
दुःखनुं मूळ कारण कर्मबंधन छे, तेना अभावरूप मोक्ष छे अने ए ज परम हित छे. वळी
साचो उपाय करवो ए ज कर्तव्य छे माटे तेनो ज अहीं तेने उपदेश आपीए छीए. हवे जेम
वैद्य रोग सहित मनुष्यने प्रथम तो रोगनुं निदान बतावे के
आ प्रमाणे आ रोग थयो छे.
तथा ए रोगना निमित्तथी तेने जे जे अवस्था थती होय ते बतावे जेथी तेने निश्चय थाय के
मने एवो ज रोग छे. वळी ए रोगने दूर करवानो उपाय अनेक प्रकारे बतावे अने ए उपायनी
तेने प्रतीति अणावे एटलुं तो वैद्यनुं काम छे तथा जो ते रोगी तेनुं साधन करे तो रोगथी
मुक्त थई पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते; ए रोगीनुं कर्तव्य छे. ए ज प्रमाणे अहीं कर्मबंधनयुक्त
जीवने प्रथम तो कर्मबंधननुं निदान दर्शावीए छीए के
आ प्रमाणे कर्मबंधन थयुं छे. वळी ए
कर्मबंधनना निमित्तथी तेने जे जे अवस्था थाय छे ते दर्शावीए छीए के जे वडे जीवने निश्चय
थाय के मने ए ज प्रमाणे कर्मबंधन छे. तथा ए कर्मबंधनथी दूर थवानो उपाय अनेक प्रकारे
बतावीए छीए अने ते उपायनी तेने प्रतीति अणावीए छीए; एटलो तो शास्त्रनो उपदेश छे.
हवे आ जीव तेनुं साधन करे तो कर्मबंधनथी मुक्त थई पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते, ए जीवनुं
कर्तव्य छे.
कर्मनो संबंधा अनादिकाळथी छे
तेथी अहीं प्रथम ज तेने कर्मबंधननुं निदान बतावीए छीए.
कर्मबंधन होवाथी नाना प्रकारना औपाधिकभावोमां जीवने परिभ्रमणपणुं होय छे, पण
एकरूपता रहेती नथी. माटे कर्मबंधन सहित अवस्थानुं नाम संसारअवस्था छे. ए संसार-
अवस्थामां अनन्तानन्त जीवद्रव्य छे. तेओ अनादिथी ज कर्मबंधन सहित छे. पण एम नथी
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