श्रद्धान थाय छे, तत्त्वश्रद्धान थतां संयमभाव थाय छे अने ते आगमथी आत्मज्ञाननी पण प्राप्ति
थाय छे, जेथी सहज मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. धर्मना अनेक अंगो छे तेमां पण एक ध्यान
विना आनाथी ऊंचुं अन्य कोई धर्मनुं अंग नथी एम जाणी हरकोई प्रकारे आगमनो अभ्यास
करवा योग्य छे. वळी आ ग्रन्थनुं वांचवुं, सांभळवुं अने विचारवुं घणुं सुगम छे, कोई
व्याकरणादिक साधननी पण जरूर पडती नथी, माटे तेना अभ्यासमां अवश्य प्रवर्तो. एथी तमारुं
कल्याण थशे.