Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तीर्थंकरादिक डर्या ते संसारभयथी जे रहित छे ते मोटो सुभट छे.
वळी प्रवचनसारमां ज्यां ‘‘मोक्षमार्ग अधिकार’’ कह्यो त्यां पण प्रथम आगमज्ञान ज
ग्रहण करवा योग्य कह्युं छे, माटे आ जीवनुं तो मुख्य कर्तव्य आगमज्ञान छे. ए थतां तत्त्वोनुं
श्रद्धान थाय छे, तत्त्वश्रद्धान थतां संयमभाव थाय छे अने ते आगमथी आत्मज्ञाननी पण प्राप्ति
थाय छे, जेथी सहज मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. धर्मना अनेक अंगो छे तेमां पण एक ध्यान
विना आनाथी ऊंचुं अन्य कोई धर्मनुं अंग नथी एम जाणी हरकोई प्रकारे आगमनो अभ्यास
करवा योग्य छे. वळी आ ग्रन्थनुं वांचवुं, सांभळवुं अने विचारवुं घणुं सुगम छे, कोई
व्याकरणादिक साधननी पण जरूर पडती नथी, माटे तेना अभ्यासमां अवश्य प्रवर्तो. एथी तमारुं
कल्याण थशे.
ए प्रमाणे श्री मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथमां
पीठबंध प्ररूपक नामनो प्रथम अधिकार समाप्त
२४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक