Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Jiv Ane Karmoni Bhinnta Amoortik Aatmathi Moortik Karmano Bandh Kevi Rite Thay Chhe.

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तमे कह्युं के‘‘ते केम संभवे?’’ पण अनादिथी जेम कोई जुदां द्रव्यो छे तेम कोई मळी रहेलां
द्रव्यो पण छे; एटले एवा संभवमां कोई विरोध तो भासतो नथी.
प्रश्नःसंबंध वा संयोग कहेवो तो त्यारे ज संभवे के ज्यारे पहेलां जुदां
होय, अने पछी मळ्यां होय, पण अहीं अनादिकाळथी मळेलां जीव अने कर्मोनो संबंध
केम कह्यो?
उत्तरःअनादिथी तो मळेलां हतां, पण पाछळथी जुदां थयां त्यारे जाण्युं के
जुदां हतां तो जुदां थयां. माटे पहेलां पण जुदां ज हतां. ए प्रमाणे अनुमान वडे वा
केवळज्ञानवडे ते प्रत्यक्ष भिन्न भासे छे; ए वडे तेओनुं बंधान होवा छतां पण भिन्नपणुं जणाय
छे. ए भिन्नतानी अपेक्षाए तेओनो संबंध वा संयोग कह्यो छे. कारण नवा मळो वा मळेला
ज हो, परंतु भिन्न द्रव्योना मेळापमां एम ज कहेवुं संभवे छे. ए प्रमाणे जीव अने कर्मनो
अनादि संबंध छे.
जीव अने कर्मोनी भिन्नता
हवे जीवद्रव्य तो देखवाजाणवारूप चैतन्यगुणनुं धारक छे; इन्द्रियगम्य न होवा योग्य
अमूर्तिक छे, तथा संकोचविस्तारशक्तिसहित असंख्यातप्रदेशी एक द्रव्य छे. तथा कर्म
चेतनागुणरहित जड, मूर्तिक अने अनंत पुद्गलपरमाणुओनो पुंज छे; माटे ते एक द्रव्य नथी.
ए प्रमाणे ए जीव अने कर्मनो अनादि संबंध छे तोपण जीवनो कोई प्रदेश कर्मरूप थतो नथी,
तथा कर्मनो कोई परमाणु जीवरूप थतो नथी पण पोतपोताना लक्षणने धरी बंने जुदां जुदां
ज रहे छे. जेम सुवर्ण अने रूपानो एक स्कंध होवा छतां पीतादि गुणोने धरी सुवर्ण जुदुं
ज रहे छे तथा श्वेतादि गुणोने धरी रूपुं जुदुं ज रहे छे तेम ए बन्ने जुदां जाणवां.
अमूर्तिक आत्माथी मूर्तिक कर्मोनो बंधा केवी रीते थाय छे
प्रश्नःमूर्तिक मूर्तिकनुं तो बंधान थवुं बने, पण अमूर्तिक अने मूर्तिकनुं
बंधान केम बने?
उत्तरःजेम व्यक्तइन्द्रियगम्य नथी एवा सूक्ष्म पुद्गलो तथा व्यक्तइन्द्रियगम्य
एवा स्थूल पुद्गलोनुं बंधान होवुं मानीए छीए तेम इन्द्रियगम्य न होवा योग्य एवो
अमूर्तिक आत्मा तथा इन्द्रियगम्य होवा योग्य मूर्तिक कर्मो
ए बंनेनुं पण बंधान छे एम
मानवुं. वळी ए बंधानमां कोई कोईने कर्ता तो छे नहि, ज्यां सुधी बंधान रहे त्यां सुधी
ए बंनेनो साथ रहे, पण छूटा पडे नहि; तथा परस्पर कार्य
कारणपणुं तेओने बन्युं रहे
एटलुं ज अहीं बंधान जाणवुं. हवे मूर्तिकअमूर्तिकनुं ए प्रमाणे बंधान थवामां कोई विरोध
नथी. ए प्रमाणे जेम एक जीवने अनादि कर्मसंबंध कह्यो ते ज प्रमाणे जुदा जुदा अनंत
जीवोने पण समजवो.
बीजो अधिकारः संसार-अवस्था निरूपण ][ २७