तमे कह्युं के — ‘‘ते केम संभवे?’’ पण अनादिथी जेम कोई जुदां द्रव्यो छे तेम कोई मळी रहेलां
द्रव्यो पण छे; एटले एवा संभवमां कोई विरोध तो भासतो नथी.
प्रश्नः — संबंध वा संयोग कहेवो तो त्यारे ज संभवे के ज्यारे पहेलां जुदां
होय, अने पछी मळ्यां होय, पण अहीं अनादिकाळथी मळेलां जीव अने कर्मोनो संबंध
केम कह्यो?
उत्तरः — अनादिथी तो मळेलां हतां, पण पाछळथी जुदां थयां त्यारे जाण्युं के —
जुदां हतां तो जुदां थयां. माटे पहेलां पण जुदां ज हतां. ए प्रमाणे अनुमान वडे वा
केवळज्ञानवडे ते प्रत्यक्ष भिन्न भासे छे; ए वडे तेओनुं बंधान होवा छतां पण भिन्नपणुं जणाय
छे. ए भिन्नतानी अपेक्षाए तेओनो संबंध वा संयोग कह्यो छे. कारण नवा मळो वा मळेला
ज हो, परंतु भिन्न द्रव्योना मेळापमां एम ज कहेवुं संभवे छे. ए प्रमाणे जीव अने कर्मनो
अनादि संबंध छे.
✾ जीव अने कर्मोनी भिन्नता ✾
हवे जीवद्रव्य तो देखवा – जाणवारूप चैतन्यगुणनुं धारक छे; इन्द्रियगम्य न होवा योग्य
अमूर्तिक छे, तथा संकोच – विस्तारशक्तिसहित असंख्यातप्रदेशी एक द्रव्य छे. तथा कर्म
चेतनागुणरहित जड, मूर्तिक अने अनंत पुद्गलपरमाणुओनो पुंज छे; माटे ते एक द्रव्य नथी.
ए प्रमाणे ए जीव अने कर्मनो अनादि संबंध छे तोपण जीवनो कोई प्रदेश कर्मरूप थतो नथी,
तथा कर्मनो कोई परमाणु जीवरूप थतो नथी पण पोतपोताना लक्षणने धरी बंने जुदां जुदां
ज रहे छे. जेम सुवर्ण अने रूपानो एक स्कंध होवा छतां पीतादि गुणोने धरी सुवर्ण जुदुं
ज रहे छे तथा श्वेतादि गुणोने धरी रूपुं जुदुं ज रहे छे तेम ए बन्ने जुदां जाणवां.
✾ अमूर्तिक आत्माथी मूर्तिक कर्मोनो बंधा केवी रीते थाय छे ✾
प्रश्नः — मूर्तिक मूर्तिकनुं तो बंधान थवुं बने, पण अमूर्तिक अने मूर्तिकनुं
बंधान केम बने?
उत्तरः — जेम व्यक्त – इन्द्रियगम्य नथी एवा सूक्ष्म पुद्गलो तथा व्यक्त – इन्द्रियगम्य
एवा स्थूल पुद्गलोनुं बंधान होवुं मानीए छीए तेम इन्द्रियगम्य न होवा योग्य एवो
अमूर्तिक आत्मा तथा इन्द्रियगम्य होवा योग्य मूर्तिक कर्मो — ए बंनेनुं पण बंधान छे एम
मानवुं. वळी ए बंधानमां कोई कोईने कर्ता तो छे नहि, ज्यां सुधी बंधान रहे त्यां सुधी
ए बंनेनो साथ रहे, पण छूटा पडे नहि; तथा परस्पर कार्य – कारणपणुं तेओने बन्युं रहे
एटलुं ज अहीं बंधान जाणवुं. हवे मूर्तिक – अमूर्तिकनुं ए प्रमाणे बंधान थवामां कोई विरोध
नथी. ए प्रमाणे जेम एक जीवने अनादि कर्मसंबंध कह्यो ते ज प्रमाणे जुदा जुदा अनंत
जीवोने पण समजवो.
बीजो अधिकारः संसार-अवस्था निरूपण ][ २७