Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Ghati-aghati Karma Ane Tena Karya Nirbal Jadkarmo Dwara Jivana Swabhavano Ghata Tatha Bahya Samgrinu MaLavu.

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घाातिअघााति कर्म अने तेनां कार्य
हवे ते कर्म ज्ञानावरणादि भेदो वडे आठ प्रकारनां छे. त्यां चार घातिकर्मोना निमित्तथी
तो जीवना स्वभावनो घात थाय छे. तेमां ज्ञानावरणदर्शनावरणवडे जीवना ज्ञान
दर्शनस्वभावनी व्यक्तता थती नथी, पण ए कर्मोना क्षयोपशम अनुसार किंचित् ज्ञानदर्शननी
व्यक्तता रहे छे. मोहनीयवडे जीवना स्वभाव नहि एवा मिथ्याश्रद्धान वा क्रोध, मान, माया
अने लोभादिक कषायोनी व्यक्तता थाय छे. तथा अंतरायवडे जीवनो स्वभाव दीक्षा लेवाना
सामर्थ्यरूप जे वीर्य
तेनी व्यक्तता थती नथी, पण तेना क्षयोपशम अनुसार किंचित् शक्ति रहे
छे. ए प्रमाणे घातिकर्मोना निमित्तथी जीवना स्वभावनो अनादिथी ज घात थयो छे. पण एम
न समजवुं के पहेलां तो स्वभावरूप शुद्धआत्मा हतो, परंतु पाछळथी कर्मनिमित्तथी
स्वभावघातवडे अशुद्ध थयो.
प्रश्नःघात नाम तो अभावनुं छे. हवे जेनो पहेलां सद्भाव होय तेनो
अभाव कहेवो बने, परंतु अहीं स्वभावनो तो सद्भाव छे ज नहि तो पछी घात कोनो
कर्यो?
उत्तरःजीवमां अनादिथी ज एवी शक्ति होय छे के जो कर्मनुं निमित्त न होय
तो केवळज्ञानादि पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते, परंतु अनादिथी ज कर्मनो संबंध होय छे तेथी
ए शक्तिनुं व्यक्तपणुं न थयुं. एटले शक्ति अपेक्षा स्वभाव छे तेनो, व्यक्त न थवा देवानी
अपेक्षाए, घात कर्यो एम कहीए छीए.
वळी चार अघातिकर्मोना निमित्तथी आत्माने बाह्य सामग्रीनो संबंध बने छे.
त्यां वेदनीयवडे तो शरीरमां वा शरीरथी बाह्य नाना प्रकारनां सुखदुःखना कारणरूप
परद्रव्योनो संयोग जोडाय छे. आयुकर्मवडे पोतानी स्थिति सुधी प्राप्त थयेला शरीरनो संबंध
छूटी शकतो नथी. नामकर्मवडे गति, जाति अने शरीरादिक नीपजे छे, तथा गोत्रकर्मवडे ऊंच
नीच कुळनी प्राप्ति थाय छे. ए प्रमाण अघातिकर्मो वडे बाह्य सामग्री एकठी थाय छे,
जे वडे मोहना उदयनो साथ मळतां जीव सुखीदुःखी थाय छे. वळी शरीरादिकना संबंधथी
जीवनो अमूर्त्तत्वादिस्वभाव पोताना स्वअर्थने करी शकतो नथी. जेम कोई शरीरने पकडे तो
आत्मा पण पकड्यो जाय छे. वळी ज्यांसुधी कर्मनो उदय रहे त्यांसुधी बाह्य सामग्री पण
तेम ज बनी रहे छे पण अन्यथा थई शकती नथी. ए प्रमाणे अघातिकर्मोनुं निमित्त जाणवुं.
निर्बळ जMकर्मो द्वारा जीवना स्वभावनो घाात
तथा बाıासामग्रीनुं मळवुं
प्रश्नःकर्म तो जड छे, जराय बळवान नथी, तो ए वडे जीवना स्वभावनो
घात थवो वा बाह्य सामग्रीनुं मळवुं केम संभवे?
२८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक