✾ घााति – अघााति कर्म अने तेनां कार्य ✾
हवे ते कर्म ज्ञानावरणादि भेदो वडे आठ प्रकारनां छे. त्यां चार घातिकर्मोना निमित्तथी
तो जीवना स्वभावनो घात थाय छे. तेमां ज्ञानावरण – दर्शनावरणवडे जीवना ज्ञान
– दर्शनस्वभावनी व्यक्तता थती नथी, पण ए कर्मोना क्षयोपशम अनुसार किंचित् ज्ञान – दर्शननी
व्यक्तता रहे छे. मोहनीयवडे जीवना स्वभाव नहि एवा मिथ्याश्रद्धान वा क्रोध, मान, माया
अने लोभादिक कषायोनी व्यक्तता थाय छे. तथा अंतरायवडे जीवनो स्वभाव दीक्षा लेवाना
सामर्थ्यरूप जे वीर्य – तेनी व्यक्तता थती नथी, पण तेना क्षयोपशम अनुसार किंचित् शक्ति रहे
छे. ए प्रमाणे घातिकर्मोना निमित्तथी जीवना स्वभावनो अनादिथी ज घात थयो छे. पण एम
न समजवुं के पहेलां तो स्वभावरूप शुद्धआत्मा हतो, परंतु पाछळथी कर्मनिमित्तथी
स्वभावघातवडे अशुद्ध थयो.
प्रश्नः — घात नाम तो अभावनुं छे. हवे जेनो पहेलां सद्भाव होय तेनो
अभाव कहेवो बने, परंतु अहीं स्वभावनो तो सद्भाव छे ज नहि तो पछी घात कोनो
कर्यो?
उत्तरः — जीवमां अनादिथी ज एवी शक्ति होय छे के जो कर्मनुं निमित्त न होय
तो केवळज्ञानादि पोताना स्वभावरूप प्रवर्ते, परंतु अनादिथी ज कर्मनो संबंध होय छे तेथी
ए शक्तिनुं व्यक्तपणुं न थयुं. एटले शक्ति अपेक्षा स्वभाव छे तेनो, व्यक्त न थवा देवानी
अपेक्षाए, घात कर्यो एम कहीए छीए.
वळी चार अघातिकर्मोना निमित्तथी आत्माने बाह्य सामग्रीनो संबंध बने छे.
त्यां वेदनीयवडे तो शरीरमां वा शरीरथी बाह्य नाना प्रकारनां सुख – दुःखना कारणरूप
परद्रव्योनो संयोग जोडाय छे. आयुकर्मवडे पोतानी स्थिति सुधी प्राप्त थयेला शरीरनो संबंध
छूटी शकतो नथी. नामकर्मवडे गति, जाति अने शरीरादिक नीपजे छे, तथा गोत्रकर्मवडे ऊंच
– नीच कुळनी प्राप्ति थाय छे. ए प्रमाण अघातिकर्मो वडे बाह्य सामग्री एकठी थाय छे,
जे वडे मोहना उदयनो साथ मळतां जीव सुखी – दुःखी थाय छे. वळी शरीरादिकना संबंधथी
जीवनो अमूर्त्तत्वादिस्वभाव पोताना स्व – अर्थने करी शकतो नथी. जेम कोई शरीरने पकडे तो
आत्मा पण पकड्यो जाय छे. वळी ज्यांसुधी कर्मनो उदय रहे त्यांसुधी बाह्य सामग्री पण
तेम ज बनी रहे छे पण अन्यथा थई शकती नथी. ए प्रमाणे अघातिकर्मोनुं निमित्त जाणवुं.
✾ निर्बळ जMकर्मो द्वारा जीवना स्वभावनो घाात
तथा बाıासामग्रीनुं मळवुं ✾
प्रश्नः — कर्म तो जड छे, जराय बळवान नथी, तो ए वडे जीवना स्वभावनो
घात थवो वा बाह्य सामग्रीनुं मळवुं केम संभवे?
२८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक