योगवडे प्रदेशबंध वा प्रकृतिबंध थाय छे एम समजवुं.
वळी मोहना उदयथी मिथ्यात्व – क्रोधादिरूप भाव थाय छे ते सर्वनुं सामान्यपणे
‘‘कषाय’’ ए नाम छे. तेनाथी कर्मप्रकृतिओनी स्थिति बंधाय छे. त्यां जेटली स्थिति बांधी
होय तेमां अबाधाकाळ१ छोडी ते पछी ज्यांसुधी बंधस्थिति पूर्ण थाय त्यांसुधी समये समये
ते प्रकृतिओनो उदय आव्या ज करे छे. त्यां देव, मनुष्य अने तिर्यंचायु विना बाकीनी सर्व
घाति – अघाति कर्मप्रकृतिओनो अल्प कषाय होय तो थोडो स्थितिबंध तथा घणो कषाय होय
तो घणो स्थितिबंध थाय छे. तथा देव, मनुष्य अने तिर्यंच ए त्रणे आयुनो, अल्प कषायथी
घणो अने घणो कषाय होय तो थोडो स्थितिबंध थाय छे.
वळी ए कषाय वडे ज ते कर्मप्रकृतिओमां अनुभागशक्तिना (फलदान – शक्तिना) भेदो
थाय छे. त्यां जेवो अनुभागबंध थाय तेवो ज उदयकाळमां ए प्रकृतिओनुं घणुं वा थोडुं फळ
नीपजे छे. त्यां घातिकर्मनी सर्व प्रकृतिओमां वा अघातिकर्मोनी पापप्रकृतिओमां अल्पकषाय होय
तो अल्प अनुभाग बंधाय छे. अने घणो कषाय होय तो तेमां घणो अनुभाग बंधाय छे.
तथा (अघातिकर्मोनी) पुण्यप्रकृतिओमां अल्प कषाय होय तो घणो अनुभाग अने घणो
कषाय होय तो थोडो अनुभाग बंधाय छे. ए प्रमाणे कषायो वडे कर्मप्रकृतिओना स्थिति –
अनुभागना भेदो पडे छे, तेथी कषायो वडे स्थितिबंध अने अनुभागबंध थाय छे एम
जाणवुं.
अहीं जेम घणी मदिरा होय छतां तेमां थोडा काळ सुधी थोडी उन्मत्तता उपजाववानी
शक्ति होय तो ते मदिरा हीनपणाने ज प्राप्त छे. तथा थोडी पण मदिरा होय छतां तेमां
आयुकर्म सिवाय साते कर्मोनी
जघन्य अबाधा पोत पोतानी
जघन्यस्थितिथी संख्यातगुणी
अल्प होय छे. तथा आयु-
कर्मनी जघन्य अबाधा
आवलीना असंख्यातमा-
भागप्रमाण तथा कोई
आचार्यना मते एक अंतर्मुहूर्त
पण होय छे.
१. आठ मूळ प्रकृतिओना उत्कृष्ट – जघन्य स्थितिबंध अने अबाधाकाळनुं कोष्टकः —
मूळ प्रकृतिओ उ. स्थितिबंधज. स्थितिबंध उ. अबाधाकाळ ज. अबाधाकाळ
१. ज्ञानावरण ३० को.को.सागर१ अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष
२. दर्शनावरण ३० को.को.सागर१ अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष
३. वेदनीय३० को.कोसागर१२ मुहूर्त३ हजार वर्ष
४. मोहनीय७० को.को.सागर१ अंतर्मुहूर्त ७ हजार वर्ष
५. आयु३३ सागर१ अंतर्मुहूर्त पूर्वकोटीवर्षत्रिभाग
६. नाम२० को.को.सागर८ मुहूर्त२ हजार वर्ष
७. गोत्र२० को.को.सागर८ मुहूर्त२ हजार वर्ष
८. अंतराय३० को.को.सागर१ अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष
(श्री गोम्मटसार कर्मकांड गाथा १२७, १३९, १५६, १५७, १५८.) — अनुवादक.
बीजो अधिकारः संसार-अवस्था निरूपण ][ ३१