छे, तेम कर्मप्रकृतिओना घणा परमाणु होय छतां तेमां थोडा काळ सुधी थोडुं फळ देवानी शक्ति
होय तो ते कर्मप्रकृति हीनपणाने प्राप्त छे तथा कर्मप्रकृतिओना थोडा परमाणुओ होय छतां
तेमां घणा काळ सुधी घणुं फळ देवानी शक्ति होय तो ते कर्मप्रकृति अधिकपणाने प्राप्त छे.
माटे योगवडे थयेलो प्रकृतिबंध
थोडा वा कोई धातुरूप घणा परमाणुओ होय छे, तेमां पण कोई परमाणुओनो संबंध घणा
काळ सुधी तथा कोईनो थोडा काळ सुधी रहे छे. वळी ए परमाणुओमां कोई तो पोतानुं कार्य
नीपजाववानी घणी शक्ति धरावे छे अने कोई अल्प शक्ति धरावे छे, हवे एम थवामां कांई
भोजनरूप पुद्गलपिंडने तो ज्ञान नथी के ‘‘हुं आम परिणमुं’’
ज्ञानावरणादि प्रकृतिरूप परिणमे छे. ए कर्मपरमाणुओमांथी यथायोग्य कोई प्रकृतिरूप थोडा
वा कोई प्रकृतिरूप घणा परमाणुओ होय छे, तेमां पण कोई परमाणुओनो संबंध घणो काळ
रहे छे तथा कोईनो थोडो काळ रहे छे, ए परमाणुओमां कोई तो पोतानुं कार्य निपजाववानी
घणी शक्ति धारे छे त्यारे कोई थोडी शक्ति धारे छे, एम थवामां कोई कर्मवर्गणारूप
पुद्गलपिंडने तो ज्ञान नथी के ‘हुं आम परिणमुं’ तथा त्यां अन्य कोई परिणमावनारो पण
नथी, परंतु एवो ज केवल निमित्त
रोकवानी शक्ति होय छे, तेम जीवभावना निमित्तवडे पुद्गलपरमाणुओमां ज्ञानावरणादिरूप
शक्ति थाय छे. अहीं विचारवडे पोताना उद्यमपूर्वक कार्य करे तो त्यां ज्ञाननी जरूर खरी,
पण तथारूप निमित्त बनतां स्वयं तेवुं परिणमन थाय त्यां ज्ञाननुं कांई प्रयोजन नथी. ए
प्रमाणे नवीन बंध थवानुं विधान जाणवुं.