Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Gyanahin Jadaparamanunu Yathayogya Prakrutiroop Parinaman.

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घणा काळ सुधी घणी उन्मत्तता उपजाववानी शक्ति होय तो ते मदिरा अधिकपणाने प्राप्त
छे, तेम कर्मप्रकृतिओना घणा परमाणु होय छतां तेमां थोडा काळ सुधी थोडुं फळ देवानी शक्ति
होय तो ते कर्मप्रकृति हीनपणाने प्राप्त छे तथा कर्मप्रकृतिओना थोडा परमाणुओ होय छतां
तेमां घणा काळ सुधी घणुं फळ देवानी शक्ति होय तो ते कर्मप्रकृति अधिकपणाने प्राप्त छे.
माटे योगवडे थयेलो प्रकृतिबंध
प्रदेशबंध बळवान नथी, परंतु कषायो वडे करेलो स्थितिबंध
अनुभागबंध ज बळवान छे. एटला माटे मुख्यपणे कषाय ज बंधनुं कारण जाणवुं.
जेओने बंध न करवो होय तेओ कषाय न करे.
ज्ञानहीन जMपरमाणुनुं यथायोग्य प्रकृतिरुप परिणमन
प्रश्नःपुद्गल परमाणुओ तो जड छे तेमने कंई ज्ञान नथी तो ते तेओ
यथायोग्य प्रकृतिरूप थई केवी रीते परिणमे छे?
उत्तरःजेम भूख लागतां मुखद्वार वडे ग्रहण करेलो भोजनरूप पुद्गलपिंड मांस,
शुक्र अने रुधिरादि धातुरूप परिणमे छे, ए भोजनना परमाणुओमां यथायोग्य कोई धातुरूप
थोडा वा कोई धातुरूप घणा परमाणुओ होय छे, तेमां पण कोई परमाणुओनो संबंध घणा
काळ सुधी तथा कोईनो थोडा काळ सुधी रहे छे. वळी ए परमाणुओमां कोई तो पोतानुं कार्य
नीपजाववानी घणी शक्ति धरावे छे अने कोई अल्प शक्ति धरावे छे, हवे एम थवामां कांई
भोजनरूप पुद्गलपिंडने तो ज्ञान नथी के ‘‘हुं आम परिणमुं’’
तथा अन्य पण कोई
परिणमावनारो नथी, परंतु एवो ज निमित्तनैमित्तिकभाव बनी रह्यो छे जे वडे ए ज
प्रमाणे परिणमन थाय छे. तेम कषाय थतां योगद्वार वडे ग्रहण करेलो कर्मवर्गणारूप पुद्गलपिंड
ज्ञानावरणादि प्रकृतिरूप परिणमे छे. ए कर्मपरमाणुओमांथी यथायोग्य कोई प्रकृतिरूप थोडा
वा कोई प्रकृतिरूप घणा परमाणुओ होय छे, तेमां पण कोई परमाणुओनो संबंध घणो काळ
रहे छे तथा कोईनो थोडो काळ रहे छे, ए परमाणुओमां कोई तो पोतानुं कार्य निपजाववानी
घणी शक्ति धारे छे त्यारे कोई थोडी शक्ति धारे छे, एम थवामां कोई कर्मवर्गणारूप
पुद्गलपिंडने तो ज्ञान नथी के ‘हुं आम परिणमुं’ तथा त्यां अन्य कोई परिणमावनारो पण
नथी, परंतु एवो ज केवल निमित्त
नैमित्तिकभाव बनी रह्यो छे जे वडे ए ज प्रकारे परिणमन
थाय छे. लोकमां पण एवां निमित्तनैमित्तिकभाव घणाय बनी रह्यां छेः जेम मंत्रना
निमित्तथी जलादिकमां रोग दूर करवानी शक्ति होय छे तथा कांकरी वगेरेमां सर्पादिकने
रोकवानी शक्ति होय छे, तेम जीवभावना निमित्तवडे पुद्गलपरमाणुओमां ज्ञानावरणादिरूप
शक्ति थाय छे. अहीं विचारवडे पोताना उद्यमपूर्वक कार्य करे तो त्यां ज्ञाननी जरूर खरी,
पण तथारूप निमित्त बनतां स्वयं तेवुं परिणमन थाय त्यां ज्ञाननुं कांई प्रयोजन नथी. ए
प्रमाणे नवीन बंध थवानुं विधान जाणवुं.
३२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक