Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Charitramoharoop Jivani Avastha.

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धारी रह्यो छे, स्वपरनो भेद करी शकतो नथी. जे पर्याय पाम्यो होय तेने ज पोतापणे माने
छे; तथा ए पर्यायमां पण जे ज्ञानादिक गुणो छे ते तो पोताना गुण छे अने रागादिक छे
ते पोताने कर्मनिमित्तथी औपाधिकभाव छे, वळी वर्णादिक छे ते पोताना गुणो नथी पण शरीरादि
पुद्गलना गुणो छे, शरीरादिमां पण वर्णादिनुं वा परमाणुओनुं पलटावुं नाना प्रकाररूप थया
करे छे ए सर्व पुद्गलनी अवस्थाओ छे, परंतु ते बधाने आ जीव पोतानुं स्वरूप जाणे छे.
स्वभाव
परभावनो विवेक थई शकतो नथी.
वळी मनुष्यादि पर्यायोमां पोतानाथी प्रत्यक्ष भिन्न धनकुटुंबादिकनो संबंध थाय छे;
अने ते पोताने आधीन परिणमता नथी तोपण तेमां आ जीव ममकार करे छे के ‘‘आ बधां
मारां छे’’ पण ए कोई पण प्रकारथी पोतानां थतां नथी, मात्र पोतानी मान्यताथी ज तेने पोतानां
माने छे. वळी मनुष्यादि पर्यायोमां कोई वेळा देवादि अने तत्त्वोनुं जे अन्यथा स्वरूप कल्पित
कर्युं तेनी तो प्रतीति करे छे, पण जेवुं यथार्थ स्वरूप छे तेवुं प्रतीत करतो नथी. ए प्रकारे
दर्शनमोहना उदयथी जीवने अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्याभाव थाय छे. तेमां ज्यारे तेनो तीव्र उदय
होय छे त्यारे सत्यार्थ श्रद्धानथी घणुं विपरीत श्रद्धान थाय छे तथा ज्यारे मंद उदय होय छे
त्यारे सत्यार्थ श्रद्धानथी थोडुं विपरीत श्रद्धान थाय.
चारित्रमोहरुप जीवनी अवस्था
चारित्रमोहना उदयथी आ जीवने कषायभाव थाय छे त्यारे पोते देखतोजाणतो छतां
पण परपदार्थोमां इष्टअनिष्टपणुं मानी क्रोधादि करे छे.
क्रोधनो उदय थतां पदार्थो प्रत्ये अनिष्टपणुं चिंतवी तेनुं बूरुं थवुं इच्छे छे. कोई मकान
आदि अचेतन पदार्थ बूरां लागतां तेने तोडवाफोडवा आदि रूपथी तेनुं बूरुं इच्छे छे तथा
कोई शत्रु आदि सचेतन पदार्थो बूरा लागे त्यारे तेने वधबंधनादि वा प्रहारादिवडे दुःख
उपजावी तेनुं बूरुं करवा इच्छे छे. वळी पोते वा अन्य चेतनअचेतन पदार्थ कोई प्रकारे
परिणमता होय अने पोताने ते परिणमन बूरुं लागे तो तेने अन्य प्रकारे परिणमाववा वडे
करीने ते परिणमननुं बूरुं इच्छे छे. ए प्रमाणे क्रोधथी बूरुं थवानी इच्छा तो करे, पण बूरुं
थवुं ते
भवितव्यआधीन छे.
माननो उदय थतां अन्य पदार्थो प्रत्ये अनिष्टपणुं मानी तेने नीचो पाडवा अने पोते
ऊंचो थवा इच्छे छे. मळ, धूळ आदि अचेतन पदार्थोमां जुगुप्सा वा निरादरादिवडे तेनी हीनता
तथा पोतानी उच्चता इच्छे छे. तथा अन्य पुरुषादि चेतन पदार्थोने पोतानी आगळ नमाववा
वा पोताने आधीन करवा इच्छे छे. इत्यादि प्रकारे अन्यनी हीनता तथा पोतानी उच्चता स्थापन
करवा इच्छे छे. लोकमां पोते जेम ऊंचो देखाय तेम शृंगारादि करे वा धन खर्चे. बीजो कोई
पोतानाथी उच्च कार्य करतो होय छतां तेने कोई पण प्रकारे नीचो दर्शावे तथा पोते नीच कार्य
बीजो अधिकारः संसार-अवस्था निरूपण ][ ४१