देखो, परंतु एक काळमां कोई एकने ज जाणो वा देखो. हवे द्रव्य अपेक्षाए ए जीवमां सर्वने
देखवा – जाणवानी शक्ति तो छे पण ते अन्य काळमां सामर्थ्यरूप थशे. वर्तमानमां सामर्थ्यरूप
नथी, तेथी ते पोताने योग्य विषयोथी अधिक विषयोने देखी – जाणी शकतो नथी. वळी पोताना
योग्य विषयोने देखवा – जाणवानी पर्याय अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति छे तेथी तेने देखी –
जाणी शके छे. परंतु व्यक्तता एक काळमां कोई एकने ज देखवा – जाणवानी होय छे.
प्रश्नः — ए तो जाण्युं, परंतु क्षयोपशम तो होय छतां बाह्य इंद्रियादिकने
अन्यथा निमित्त मळतां देखवुं – जाणवुं न थाय, थोडुं थाय वा अन्यथा थाय छे, हवे
एम थतां कर्मनुं ज निमित्त तो न रह्युं?
उत्तरः — जेम रोकवावाळाए एम कह्युं के – पांच गामोमांथी एक दिवसमां कोई एक
ज गाममां जाओ अने ते पण आ चाकरोने साथे लईने जाओ. हवे ए चाकर अन्यथा परिणमे
तो जवुं न थाय, थोडुं थाय वा अन्यथा थाय. तेम कर्मनो एवो ज क्षयोपशम थयो छे के –
आटला विषयोमां कोई एक विषयने एक काळमां देखो वा जाणो. अने ते पण आटलां बाह्य
द्रव्योनुं निमित्त थतां ज देखो वा जाणो. हवे त्यां ए बाह्य द्रव्य अन्यथा परिणमे तो देखवुं –
जाणवुं न थाय, थोडुं थाय वा अन्यथा थाय. ए प्रमाणे आ कर्मना क्षयोपशमना ज विशेष
छे, माटे त्यां कर्मोनुं ज निमित्त जाणवुं. जेम कोईने अंधकारना परमाणु आडां आवतां देखवुं
थाय नहि, परंतु घुवड अने बिलाडां आदि प्राणीओने आडां आववा छतां पण देखवानुं बने
छे; ए प्रमाणे आ क्षयोपशमनी ज विशेषता छे. अर्थात् जेवो जेवो क्षयोपशम होय तेवुं तेवुं
ज देखवुं – जाणवुं थाय छे. ए प्रमाणे आ जीवने क्षयोपशमज्ञाननी प्रवृत्ति होय छे.
वळी मोक्षमार्गमां अवधि – मनःपर्ययज्ञान होय छे ते पण क्षयोपशमज्ञान ज छे. तेने
पण ए ज प्रमाणे एक काळमां कोई एकने प्रतिभासवारूप वा परद्रव्यनुं आधीनपणुं जाणवुं.
वळी जे विशेषता छे ते विशेष जाणवी. ए प्रमाणे ज्ञानावरण – दर्शनावरणना उदयना निमित्तथी
ज्ञान – दर्शनना घणा अंशोनो तो अभाव होय छे तथा तेना क्षयोपशमथी थोडा अंशोनो सद्भाव
होय छे.
✾ मिथ्यात्वरुप जीवनी अवस्था ✾
वळी आ जीवने मोहना उदयथी मिथ्यात्व तथा कषायभाव थाय छे. त्यां दर्शनमोहना
उदयथी मिथ्यात्वभाव थाय छे, जेथी आ जीव अन्यथा प्रतीतिरूप अतत्त्वश्रद्धान करे छे. जेम
छे तेम मानतो नथी, पण जेम नथी तेम माने छे. अमूर्तिक प्रदेशोनो पुंज प्रसिद्ध ज्ञानादि
गुणोनो धारक अनादिनिधन वस्तु पोते छे, तथा मूर्तिक पुद्गलद्रव्योनो पिंड प्रसिद्ध ज्ञानादिरहित
नवीन ज जेनो संयोग थयो छे एवा शरीरादि पुद्गल के जे पोतानाथी पर छे — एना
संयोगरूप नाना प्रकार मनुष्य – तिर्यंचादि पर्यायो होय छे ते पर्यायोमां आ मूढ जीव अहंबुद्धि
४० ][ मोक्षमार्गप्रकाशक