Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 45 of 370
PDF/HTML Page 73 of 398

 

background image
संबंध थाय तो मायावश थई तेनाथी पण छळ करे. कांई विचार ज रहेतो नथी. वळी छळ
करवा छतां पण कार्यसिद्धि न थाय तो पोते अंतरंगमां घणो ज संतापवान थाय छे, पोतानां
अंगोनो घात करे वा विषभक्षणादि करी मरण पामे; एवी एवी अवस्था माया थतां
थाय छे.
लोभ कषाय ऊपजे त्यारे इष्ट पदार्थना लाभनी इच्छा थाय छे अने तेना अर्थे अनेक
उपाय विचारे, तेना साधनरूप वचन बोले, शरीरनी अनेक चेष्टा करे, घणां कष्ट सहन करे,
सेवा
चाकरी करे, विदेशगमन करे, जे वडे पोतानुं मरण थतुं जाणे एवां कार्य पण करे,
जेमां घणुं दुःख थाय एवा प्रारंभ पण करे, लोभ थतां पूज्य वा इष्टजननुं कार्य होय त्यां
पण पोतानुं प्रयोजन साधे. कांई विचार रहेतो नथी. वळी प्राप्त थयेली इष्ट वस्तुनी अनेक
प्रकारे रक्षा करे, तथा इष्ट वस्तुनी प्राप्ति न थाय वा इष्टनो वियोग थाय तो पोते अंतरंगमां
घणो ज संतापवान थाय छे, पोतानां अंगोनो घात करे वा विषभक्षणादि करी मरण पामे;
एवी एवी अवस्था लोभ थतां थाय छे.
ए प्रमाणे कषायो वडे पीडित थतो जीव ए अवस्थाओमां प्रवर्ते छे. वळी ए
कषायोनी साथे नोकषाय थाय छे. त्यांः
ज्यारे हास्य नोकषाय थाय त्यारे पोते विकसित थायप्रफुल्लित थाय; ते एवुं जाणवुं
केजेम सन्निपातना रोगीनुं हसवुं! पोते नाना प्रकारनां रोगथी पीडित छतां कोई कल्पना
वडे हसवा लागी जाय छे तेम आ जीव अनेक पीडा सहित होवा छतां कोई जूठी कल्पनावडे
पोताने सुहावतुं कार्य मानी हर्ष माने छे. पण वास्तविकपणे तो ए दुःखी ज छे. सुखी
नथी. सुखी तो कषायरोग मटतां ज थशे.
ज्यारे रति नोकषाय ऊपजे त्यारे इष्ट वस्तुमां अति आसक्त बनी जाय छे. जेम
बिलाडी उंदरने पकडी आसक्त थाय छे त्यारे तेने कोई मारे छतां पण ते उंदरने छोडे नहि,
ते कठिनताथी प्राप्त थवाने कारणे तथा वियोग थवाने अभिप्राय सहित ए आसक्तता होय
छे माटे ते दुःखी ज छे.
ज्यारे अरति नोकषाय ऊपजे त्यारे ते अनिष्ट वस्तुनो संयोग पामी महाव्याकुळ थाय
छे. अनिष्टनो संयोग थयो ते पोताने गमतो नथी. ए पीडा सहन न थवाथी तेनो वियोग करवा
माटे तरफडे छे, तेथी ते दुःख ज छे.
ज्यारे शोक नोकषाय ऊपजे त्यारे इष्टनो वियोग वा अनिष्टनो संयोग थतां अति
व्याकुळ बनी दुःखी थाय, रडे, पोकार करे अने असावधान बनी पोतानो अंगघात करीने पण
मरण पामे. पण तेथी कांई सिद्धि थती नथी, मात्र पोते ज महादुःखी थाय छे.
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ५५