Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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किंचित् पण न मळवाथी ए शक्ति होवा छतां पण तेओ महादुःखी छे. क्रोधादिक कषायोनुं
अति तीव्रपणुं होवाथी तेमने कृष्णादिक अशुभ लेश्याओ ज होय छे.
क्रोधमानवडे एकबीजाने दुःख आपवानी ज निरंतर प्रवृत्ति होय छे. जो तेओ
एकबीजानी साथे मित्रता करे तो ए दुःख मटी जाय. वळी अन्यने दुःख आपवाथी तेमनुं
कांई पण कार्य सिद्ध थतुं नथी, छतां क्रोध
मानना अति तीव्रपणा वडे करीने तेओनामां
एकबीजाने दुःखी करवानी ज बुद्धि रहे छे. विक्रियावडे अन्यने दुःखदायक शरीरना अंग
वा शस्त्रादिक बनावी ए वडे पोते बीजाने दुःखी करे वा पोताने अन्य कोई दुःखी करे छे.
कोई पण वेळा तेमनो कषाय शांत थतो नथी. वळी तेमनामां माया
लोभनी पण अति तीव्रता
छे. परंतु कोई इष्ट सामग्री त्यां देखाती नथी तेथी तेओ ए कषायोनुं कार्य प्रगट करी शकता
नथी, पण ए वडे अंतरंगमां तेओ महादुःखी ज छे. वळी कदाचित् किंचित् कोई प्रयोजन
पामी तेनुं पण कार्य बने छे.
तेओमां हास्य अने रति कषाय छे पण बाह्य निमित्त न होवाथी ते प्रगट थता
नथी. कदाचित् किंचित् कोई कारणवशात् प्रगट थाय छे. अरति, शोक, भय अने जुगुप्सानां
बाह्य कारणो त्यां सदा होय छे तेथी ए कषायो तीव्रपणे प्रगट होय छे. त्रण प्रकारना वेदमां
मात्र एक नपुंसकवेद तेमनामां होय छे. हवे इच्छा घणी होय छे पण त्यां स्त्री
पुरुषथी
रमवानुं निमित्त न होवाथी तेओ महादुःखी छे.
ए प्रमाणे कषायो वडे तेओ महादुःखी छे.
वेदनीयमां एक अशातानो ज तेमने उदय होवाथी त्यां अनेक वेदनानां निमित्त मळ्या
ज करे छे. शरीरमां कोढ, कास अने खांसी आदि अनेक रोग युगपत् होय छे. भूखतरस
तो तेमने एवी तीव्र होय छे के सर्वनुं भक्षणपान करवा तेओ इच्छे छे. त्यांनी माटीनुं भोजन
तेमने मळे छे, पण ए माटी एवी होय छे जे अहीं आवे तो तेनी दुर्गंधथी केटलाय गाउ
सुधीना मनुष्यो मरी जाय. शीत
उष्णता त्यां एवां होय छे के लाख योजननो लोखंडनो गोळो
होय ते पण तेनाथी भस्म थई जाय. तेमां केटलांक नरकोमां अति शीतता छे अने केटलांक
नरकोमां अति उष्णता छे. त्यांनी पृथ्वी शस्त्रथी पण महातीक्ष्ण कंटकना समूहथी भरेली छे.
ए पृथ्वीना वननां झाड शस्त्रनी धार जेवां पादडांथी भरेलां छे, जेनो स्पर्श थतां शरीरना खंडखंड
थई जाय एवा जल सहित तो ज्यां नदीओ छे, तथा जेथी शरीर दग्ध थई जाय एवो प्रचंड
ज्यां पवन छे. ए नारकीओ एकबीजाने अनेक प्रकारे दुःखी करे, घाणीमां पीले, शरीरना
खंडखंड करे, हांडीमां रांधे, कोरडा मारे तथा लालचोळ गरम लोखंड आदिथी स्पर्श करावे
इत्यादि वेदना परस्पर उपजावे छे. त्रीजी नरक सुधी तो असुरकुमार देव जईने पोते पीडा
आपे वा तेमने परस्पर लडावे. एवी तीव्र वेदना होवा छतां पण तेमनुं शरीर छूटतुं नथी,
पारानी माफक खंडखंड थई जवा छतां पण पाछुं मळी जाय छे. एवी त्यां तीव्र पीडा छे.
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ६७