अति तीव्रपणुं होवाथी तेमने कृष्णादिक अशुभ लेश्याओ ज होय छे.
कांई पण कार्य सिद्ध थतुं नथी, छतां क्रोध
वा शस्त्रादिक बनावी ए वडे पोते बीजाने दुःखी करे वा पोताने अन्य कोई दुःखी करे छे.
कोई पण वेळा तेमनो कषाय शांत थतो नथी. वळी तेमनामां माया
नथी, पण ए वडे अंतरंगमां तेओ महादुःखी ज छे. वळी कदाचित् किंचित् कोई प्रयोजन
पामी तेनुं पण कार्य बने छे.
बाह्य कारणो त्यां सदा होय छे तेथी ए कषायो तीव्रपणे प्रगट होय छे. त्रण प्रकारना वेदमां
मात्र एक नपुंसकवेद तेमनामां होय छे. हवे इच्छा घणी होय छे पण त्यां स्त्री
वेदनीयमां एक अशातानो ज तेमने उदय होवाथी त्यां अनेक वेदनानां निमित्त मळ्या
तेमने मळे छे, पण ए माटी एवी होय छे जे अहीं आवे तो तेनी दुर्गंधथी केटलाय गाउ
सुधीना मनुष्यो मरी जाय. शीत
नरकोमां अति उष्णता छे. त्यांनी पृथ्वी शस्त्रथी पण महातीक्ष्ण कंटकना समूहथी भरेली छे.
ए पृथ्वीना वननां झाड शस्त्रनी धार जेवां पादडांथी भरेलां छे, जेनो स्पर्श थतां शरीरना खंडखंड
थई जाय एवा जल सहित तो ज्यां नदीओ छे, तथा जेथी शरीर दग्ध थई जाय एवो प्रचंड
ज्यां पवन छे. ए नारकीओ एकबीजाने अनेक प्रकारे दुःखी करे, घाणीमां पीले, शरीरना
खंडखंड करे, हांडीमां रांधे, कोरडा मारे तथा लालचोळ गरम लोखंड आदिथी स्पर्श करावे
आपे वा तेमने परस्पर लडावे. एवी तीव्र वेदना होवा छतां पण तेमनुं शरीर छूटतुं नथी,
पारानी माफक खंडखंड थई जवा छतां पण पाछुं मळी जाय छे. एवी त्यां तीव्र पीडा छे.