Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Manushyagatina Dukhonu Varnan ^.

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मनुष्यगतिनां दुःखोनुं वर्णन
मनुष्यगतिमां असंख्याता जीवो तो लब्धिअपर्याप्तक छे. तेओ तो सन्मूर्छन ज होय
छे. तेमनुं आयु उच्छ्वासना अढारमा भागमात्र होय छे. वळी केटलाक जीवो गर्भमां आवी
थोडा ज काळमां मरण पामे छे. तेमनी शक्ति प्रगट भासती नथी एटले एमनां दुःख तो
एकेन्द्रियवत् समजवां. विशेष छे ते विशेष समजवां.
गर्भज जीवोने केटलोक काळ गर्भमां रहेवानुं थई पछी बहार नीकळवुं थाय छे. तेमनां
दुःखोनुं वर्णन कर्मअपेक्षाए पूर्वे कर्युं छे तेवुं समजवुं. ए बधुं वर्णन गर्भज मनुष्योने संभवे
छे. अथवा तिर्यंचोनुं वर्णन कर्युं छे तेम जाणवुं.
विशेष ए छे केअहीं कोई शक्ति विशेष होय छे, राजाओ आदिने शातानो विशेष
उदय होय छे, क्षत्रियादिकोने उच्च गोत्रनो पण उदय होय छे तथा धनकुटुंबादिकनां निमित्त
अहीं विशेष होय छे; इत्यादि विशेष समजवां.
अथवा गर्भादि अवस्थानां दुःखो तो प्रत्यक्ष भासे छे. जेम विष्टामां लट उत्पन्न थाय
तेम गर्भमां शुक्रशोणितना बिंदुने पोताना शरीररूप करी जीव उत्पन्न थाय छे. पछी त्यां
क्रमपूर्वक ज्ञानादिकनी वा शरीरनी वृद्धि थाय छे. गर्भनां दुःख घणां छे, संकोचरूप अने
अधोमुख रही क्षुधा
तृषादि सहित गर्भनो काळ पूर्ण करे छे. त्यांथी ज्यारे बहार नीकळे
छे त्यारे बाळ अवस्थामां ते महादुःखी थाय छे. कोई एम कहे के बाळअवस्थामां थोडां
दुःख होय छे पण एम नथी. परंतु शक्ति थोडी होवाथी ते व्यक्त थई शकतां नथी. पछी
व्यापारादिक वा विषयइच्छा आदि दुःखोनी प्रगटता थाय छे. त्यां इष्ट
अनिष्टजनित व्याकुळता
रह्या ज करे छे. अने वृद्ध थतां शक्तिहीन थई जवाथी ते परम दुःखी थाय छे. ए दुःख
प्रत्यक्ष थतां जोईए छीए.
अमे अहीं घणुं शुं कहीए? प्रत्यक्ष जेने नथी भासतां ते कहेलां केम सांभळशे? वळी
मनुष्यगतिमां कोई वेळा किंचित् शातानो उदय होय छे पण ते आकुळतामय छे. अने
तीर्थंकरादि पद मोक्षमार्ग प्राप्त थया विना होतां नथी.
ए प्रमाणे मनुष्यपर्यायमां दुःख ज छे. पण ए मनुष्यपर्यायमां कोई पोतानुं भलुं
थवानो प्रयत्न करे तो ते थई शके छे. जेम काणां सांठानी जड वा सांठा उपरनो फिक्को भाग
तो चूसवा योग्य ज नथी अने वच्चेनी काणी गांठो होवाथी ते पण चूसी शकाती नथी. छतां
कोई स्वादनो लोलुपी तेने बगाडो तो भले बगाडो, परंतु जो तेने वाववामां आवे तो तेमांथी
घणा सांठा थाय अने तेनो स्वाद पण घणो मीठो आवे. तेम मनुष्यपणामां बाळ अने वृद्धपणुं
तो सुख भोगववा योग्य नथी, वच्चेनी अवस्था ते पण रोग
क्लेशादि युक्त होवाथी त्यां
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ६९