Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Devgatina Dukhonu Varnan.

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सुख ऊपजतुं नथी, छतां कोई विषयसुखनो लोलुपी तेने बगाडे तो भले बगाडे, परंतु जो
तेने धर्मसाधनमां लगावे तो तेथी घणा उच्चपदने ते पामे. त्यां घणुं निराकुळ सुख पामे.
माटे अहीं ज पोतानुं हित साधवुं; पण सुख थवाना भ्रमथी आ मनुष्यजन्मने वृथा न गुमाववो.
देवगतिनां दुःखोनुं वर्णन
देवगतिमां ज्ञानादिकनी शक्ति अन्य करतां कंईक वधारे होय छे. घणा देवो तो
मिथ्यात्ववडे अतत्त्वश्रद्धानयुक्त ज थई रह्या छे; तेओने कषाय कंईक मंद छे; भवनवासी,
व्यंतर अने ज्योतिषी देवोने कषाय घणो मंद नथी, उपयोग बहु चंचळ छे तथा शक्ति कंईक
छे ते द्वारा कषायनां कार्योमां ज प्रवर्ते छे. कुतूहलादि तथा विषयादि कार्योमां ज तेओ लागी
रहेला होवाथी ए व्याकुळतावडे तेओ दुःखी ज छे. वैमानिक देवोमां उपर उपरना देवोमां
विशेष मंद कषाय छे. शक्ति पण विशेष छे तेथी व्याकुळता घटवाथी दुःख पण घटतुं छे.
आ देवोने क्रोधमान कषाय छे, परंतु कारणो थोडा होवाथी तेना कार्यनी पण गौणता
होय छे. कोईनुं बूरुं करवुं, कोईने हीन करवो इत्यादि कार्य निकृष्ट देवोमां तो कुतूहलादिवडे
होय छे, पण उत्कृष्ट देवोमां थोडां होय छे तेथी त्यां तेनी मुख्यता नथी. माया
लोभ कषायनां
कारणो त्यां होवाथी तेना कार्यनी मुख्यता छे. छळ करवुं, विषयसामग्रीनी इच्छा करवी इत्यादि
कार्य त्यां विशेष होय छे. ए पण उपर उपरना देवोने थोडां होय छे.
हास्य अने रतिकषायनां कारणो घणां होवाथी तेना कार्योनी त्यां मुख्यता होय छे.
अरति, शोक, भय अने जुगुप्सानां कारणो थोडां होवाथी तेनां कार्योनी त्यां गौणता होय छे.
तथा स्त्री
पुरुषवेदनो त्यां उदय छे अने रमवानां निमित्त पण छे तेथी तेओ कामसेवन करे
छे; ए कषाय पण उपर उपरना देवोमां मंद होय छे. अहमिन्द्र देवोमां वेदनी मंदता होवाथी
कामसेवननो पण अभाव होय छे.
ए प्रमाणे देवोने कषायभाव होय छे अने कषायथी ज दुःख छे.
तेमने जेटलो कषाय थोडो छे तेटलुं दुःख पण थोडुं छे, तेथी अन्यनी अपेक्षाए तेमने
सुखी कहीए छीए. परंतु वास्तविकपणे कषायभाव जीवित छे तेथी ते दुःखी ज छे.
वळी वेदनीयमां शातानो उदय तेमने घणो छे. तेमां भवनत्रिक देवोने थोडो होय छे
तथा वैमानिक देवोमां उपर उपरना देवोने वधारे होय छे. शरीरनी इष्ट अवस्था तथा स्त्री
मकानादिक सामग्रीओनो संयोग होय छे. कदाचित् किंचित् अशातानो उदय पण कोई कारणथी
तेमने होय छे. ए अशातानो उदय हलका देवोने कंईक प्रगटपणे छे, परंतु उत्कृष्ट देवोने
ते विशेष प्रगट नथी. तेमनुं आयुष्य घणुं छे, ओछामां ओछुं दशहजार वर्ष तथा उत्कृष्ट
तेत्रीस सागर छे. अने ३१ सागरथी वधारे आयुष्यनो धारक मोक्षमार्ग पाम्या विना कोई
७० ][ मोक्षमार्गप्रकाशक