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चौथा अधिकार ][ ८९
कि मैं इसे चला रहा हूँ तो वह असत्य मानता है; यदि उसके चलानेसे चलती हो तो जब
वह नहीं चलती तब क्यों नहीं चलाता? उसी प्रकार पदार्थ परिणमित होते हैं और यह जीव
उनका अनुसरण करके ऐसा मानता है कि इनको मैं ऐसा परिणमित कर रहा हूँ, परन्तु वह
असत्य मानता है; यदि उसके परिणमानेसे परिणमित होते हैं तो वे वैसे परिणमित नहीं होते
तब क्यों नहीं परिणमाता? सो जैसा स्वयं चाहता है वैसा पदार्थका परिणमन कदाचित् ऐसे
ही बन जाय तब होता है। बहुत परिणमन तो जिन्हें स्वयं नहीं चाहता वैसे ही होते देखे
जाते हैं, इसलिए यह निश्चय है कि अपने करनेसे किसीका सद्भाव या अभाव होता नहीं।
तथा यदि अपने करनेसे सद्भाव-अभाव होते ही नहीं तो कषायभाव करनेसे क्या हो?
केवल स्वयं ही दुःखी होता है। जैसे — किसी विवाहादि कार्योमें जिसका कुछ भी कहा नहीं
होता, वह यदि स्वयं कर्त्ता होकर कषाय करे तो स्वयं ही दुःखी होता है — उसी प्रकार जानना।
इसलिये कषायभाव करना ऐसा है जैसे जलका बिलोना कुछ कार्यकारी नहीं है।
इसलिये इन कषायोंकी प्रवृत्तिको मिथ्याचारित्र कहते हैं।
इष्ट-अनिष्टकी मिथ्या कल्पना
तथा कषायभाव होते हैं सो पदार्थोंको इष्ट-अनिष्ट मानने पर होते हैं, सो इष्ट-अनिष्ट
मानना भी मिथ्या है; क्योंकि कोई पदार्थ इष्ट-अनिष्ट है नहीं।
कैसे? सो कहते हैंः — जो अपनेको सुखदायक – उपकारी हो उसे इष्ट कहते हैं; अपनेको
दुःखदायक – अनुपकारी हो उसे अनिष्ट कहते हैं। लोकमें सर्व पदार्थ अपने-अपने स्वभावके ही
कर्त्ता हैं, कोई किसीको सुख-दुःखदायक, उपकारी-अनुपकारी है नहीं। यह जीव ही अपने
परिणामोंमें उन्हें सुखदायक – उपकारी मानकर इष्ट जानता है अथवा दुःखदायक – अनुपकारी
जानकर अनिष्ट मानता है; क्योंकि एक ही पदार्थ किसीको इष्ट लगता है, किसीको अनिष्ट लगता
है। जैसे – जिसे वस्त्र न मिलता हो उसे मोटा वस्त्र इष्ट लगता है और जिसे पतला वस्त्र मिलता
है उसे वह अनिष्ट लगता है। सूकरादिको विष्टा इष्ट लगती है, देवादिको अनिष्ट लगती है।
किसीको मेघवर्षा इष्ट लगती है, किसीको अनिष्ट लगती है। — इसी प्रकार अन्य जानना।
तथा इसी प्रकार एक जीवको भी एक ही पदार्थ किसी कालमें इष्ट लगता है, किसी
कालमें अनिष्ट लगता है। तथा यह जीव जिसे मुख्यरूपसे इष्ट मानता है, वह भी अनिष्ट
होता देखा जाता है — इत्यादि जानना। जैसे — शरीर इष्ट है, परन्तु रोगादि सहित हो तब
अनिष्ट हो जाता है; पुत्रादिक इष्ट हैं, परन्तु कारण मिलने पर अनिष्ट होते देखे जाते हैं —
इत्यादि जानना। तथा यह जीव जिसे मुख्यरूपसे अनिष्ट मानता है, वह भी इष्ट होता देखते
हैं। जैसे — गाली अनिष्ट लगती है, परन्तु ससुरालमें इष्ट लगती है। इत्यादि जानना।