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९२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
यहाँ प्रश्न है कि — शरीरकी अवस्था एवं बाह्य पदार्थोंमें इष्ट-अनिष्ट माननेका प्रयोजन
तो भासित नहीं होता और इष्ट-अनिष्ट माने बिना रहा भी नहीं जाता; सो कारण क्या?
समाधानः — इस जीवके चारित्रमोहके उदयसे राग-द्वेषभाव होते हैं और वे भाव किसी
पदार्थके आश्रय बिना हो नहीं सकते। जैसे — राग हो तो किसी पदार्थमें होता है, द्वेष हो
तो किसी पदार्थमें होता है। — इस प्रकार उन पदार्थोंके और राग-द्वेषके निमित्त-नैमित्तिक
सम्बन्ध है। वहाँ विशेष इतना है कि — कितने ही पदार्थ तो मुख्यरूपसे रागके कारण हैं
और कितने ही पदार्थ मुख्यरूपसे द्वेषके कारण हैं। कितने ही पदार्थ किसीको किसी कालमें
रागके कारण होते हैं तथा किसीको किसी कालमें द्वेषके कारण होते हैं।
यहाँ इतना जानना — एक कार्य होनेमें अनेक कारण चाहिये सो रागादिक होनेमें
अन्तरंग कारण मोहका उदय है वह तो बलवान है और बाह्य कारण पदार्थ है वह बलवान
नहीं है। महा मुनियोंको मोह मन्द होनेसे बाह्य पदार्थोंका निमित्त होने पर भी राग-द्वेष उत्पन्न
नहीं होते। पापी जीवोंको मोह तीव्र होनेसे बाह्य कारण न होने पर भी उनके संकल्पहीसे
राग-द्वेष होते हैं। इसलिये मोहका उदय होनेसे रागादिक होते हैं। वहाँ जिस बाह्य पदार्थके
आश्रयसे रागभाव होना हो, उसमें बिना ही प्रयोजन अथवा कुछ प्रयोजनसहित इष्टबुद्धि होती
है। तथा जिस पदार्थके आश्रयसे द्वेषभाव होना हो उसमें बिना ही प्रयोजन अथवा कुछ
प्रयोजनसहित अनिष्टबुद्धि होती है। इसलिये मोहके उदयसे पदार्थोंको इष्ट-अनिष्ट माने बिना
रहा नहीं जाता।
इस प्रकार पदार्थोंमें इष्ट-अनिष्टबुद्धि होने पर जो राग-द्वेषरूप परिणमन होता है, उसका
नाम मिथ्याचारित्र जानना।
तथा इन राग-द्वेषोंहीके विशेष क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक,
भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेदरूप कषायभाव हैं; वे सब इस मिथ्याचारित्रहीके
भेद जानना। इनका वर्णन पहले किया ही है१।
तथा इस मिथ्याचारित्रमें स्वरूपाचरणचारित्रका अभाव है, इसलिये इसका नाम अचारित्र
भी कहा जाता है। तथा यहाँ वे परिणाम मिटते नहीं हैं अथवा विरक्त नहीं हैं, इसलिये
इसीका नाम असंयम कहा जाता है या अविरति कहा जाता है। क्योंकि पाँच इन्द्रियाँ और
मनके विषयोंमें तथा पंचस्थावर और त्रसकी हिंसामें स्वच्छन्दपना हो तथा उनके त्यागरूप भाव
नहीं हो, वही बारह प्रकारका असंयम या अविरति है। कषायभाव होने पर ऐसे कार्य होते
हैं, इसलिये मिथ्याचारित्रका नाम असंयम या अविरति जानना। तथा इसीका नाम अव्रत
१. पृष्ठ ३८, ५२