Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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९८ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
फि र मिलकर सोनेका डला हो जाता है। उसी प्रकार ब्रह्म एक था, फि र अनेकरूप हुआ
और फि र एक होगा, इसलिये एक ही है।
इस प्रकार एकत्व मानता है तो जब अनेकरूप हुआ तब जुड़ा रहा या भिन्न हुआ?
यदि जुड़ा रहा कहेगा तो पूर्वोक्त दोष आयेगा। भिन्न हुआ कहेगा तो उस काल तो एकत्व
नहीं रहा। तथा जल, सुवर्णादिकको भिन्न होने पर भी एक कहते हैं वह तो एक जाति
अपेक्षासे कहते हैं, परन्तु यहाँ सर्व पदार्थोंकी एक जाति भासित नहीं होती। कोई चेतन
है, कोई अचेतन है, इत्यादि अनेक रूप हैं; उनकी एक जाति कैसे कहें? तथा पहले एक
था, फि र भिन्न हुआ मानते हैं तो जैसे एक पाषाण फू टकर टुकड़े हो जाता है उसी प्रकार
ब्रह्मके खण्ड हो गये, फि र उनका इकट्ठा होना मानता है तो वहाँ उनका स्वरूप भिन्न रहता
है या एक हो जाता है? यदि भिन्न रहता है तो वहाँ अपने-अपने स्वरूपसे भिन्न ही हैं
और एक हो जाते हैं तो जड़ भी चेतन हो जायेगा व चेतन जड़ हो जायगा। वहाँ अनेक
वस्तुओंकी एक वस्तु हुई तब किसी कालमें अनेक वस्तु, किसी कालमें एक वस्तु ऐसा कहना
बनेगा, ‘अनादि-अनन्त एक ब्रह्म है’
ऐसा कहना नहीं बनेगा।
तथा यदि कहेगा कि लोक-रचना होनेसे व न होनेसे ब्रह्म जैसाका तैसा ही रहता है,
इसलिये ब्रह्म अनादि-अनन्त है। तो हम पूछते हैं कि लोकमें पृथ्वी, जलादिक देखे जाते हैं वे
अलग नवीन उत्पन्न हुए हैं या ब्रह्म ही इन स्वरूप हुआ है? यदि अलग नवीन उत्पन्न हुए हैं
तो वे न्यारे हुए, ब्रह्म न्यारा रहा; सर्वव्यापी अद्वैत ब्रह्म नहीं ठहरा। तथा यदि ब्रह्म ही इन
स्वरूप हुआ तो कदाचित् लोक हुआ, कदाचित् ब्रह्म हुआ, फि र जैसाका तैसा कैसा रहा?
तथा वह कहता है किसभी ब्रह्म तो लोकस्वरूप नहीं होता, उसका कोई अंश
होता है। उससे कहते हैंजैसे समुद्रका एक बिन्दु विषरूप हुआ, वहाँ स्थूल दृष्टिसे तो
गम्य नहीं है, परन्तु सूक्ष्मदृष्टि देने पर तो बिन्दु अपेक्षा समुद्रके अन्यथापना हुआ। उसी
प्रकार ब्रह्मका एक अंश भिन्न होकर लोकरूप हुआ, वहाँ स्थूल विचारसे तो गम्य नहीं है,
परन्तु सूक्ष्म विचार करने पर तो एक अंश अपेक्षासे ब्रह्मके अन्यथापना हुआ। यह अन्यथापना
और तो किसीके हुआ नहीं है।
इस प्रकार सर्वरूप ब्रह्मको मानना भ्रम ही है।
तथा एक प्रकार यह है
जैसे आकाश सर्वव्यापी एक है, उसी प्रकार ब्रह्म सर्वव्यापी
एक है। यदि इस प्रकार मानता है तो आकाशवत् बड़ा ब्रह्मको मान और जहाँ घटपटादिक
हैं वहाँ जिस प्रकार आकाश है उसी प्रकार ब्रह्म भी है
ऐसा भी मान, परन्तु जिस प्रकार