स्वभाव शाश्वत नहीं ठहरा और यदि कहेगा कि
कहता है, वे तो उन पदार्थमय हुए। और अभिन्न उत्पन्न हुए तो माया ही तद्रूप हुई, नवीन
पदार्थ उत्पन्न किसलिये कहता है?
तथा वे कहते हैं
भावको तामस कहते हैं, मन्दकषायरूप भावको सात्त्विक कहते हैं। सो यह भाव तो चेतनामय
प्रत्यक्ष देखे जाते हैं और मायाका स्वरूप जड़ कहते हो, सो जड़से यह भाव कैसे उत्पन्न
हों? यदि जड़के भी हों तो पाषाणादिकके भी होंगे, परन्तु चेतनास्वरूप जीवोंके ही यह
भाव दिखते हैं; इसलिये यह भाव मायासे उत्पन्न नहीं हैं। यदि मायाको चेतन ठहराये तो
यह मानें। सो मायाको चेतन ठहराने पर शरीरादिक मायासे उत्पन्न कहेगा तो नहीं मानेंगे।
इसलिये निर्धार कर; भ्रमरूप माननेसे लाभ क्या है।
क्रोध होगा, क्रोधसे पुरुष कैसे उत्पन्न होगा? फि र इन गुणोंकी तो निन्दा करते हैं, इनसे
उत्पन्न हुए ब्रह्मादिकको पूज्य कैसे माना जाता है? तथा गुण तो मायामयी और इन्हें ब्रह्मके
अवतार कहा जाता है सो यह तो मायाके अवतार हुए, इनको ब्रह्मका अवतार *कैसे कहा
और जो इन्हींकी मूर्ति उन्हें पूज्य मानें यह कैसा भ्रम है?
कलिकालके प्रारम्भमें परब्रह्म परमात्माने रजोगुणसे उत्पन्न होकर ब्रह्मा बनकर प्रजाकी रचना की।
प्रलयके समय तमोगुणसे उत्पन्न हो काल (शिव) बनकर सृष्टिको ग्रस लिया। उस परमात्माने सत्त्वगुणसे
उत्पन्न हो, नारायण बनकर समुद्रमें शयन किया।