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पाँचवाँ अधिकार ][ १४५
श्वेताम्बरमत विचार
तथा कालदोषसे कषायी जीवों द्वारा जिनमतमें कल्पित रचना की है। सो बतलाते हैंः —
श्वेताम्बर मतवाले किसीने सूत्र बनाये उन्हें गणधरके बनाये कहते हैं। सो उनसे पूछते
हैं — गणधरने आचारांगादिक बनाये हैं सो तुम्हारे वर्त्तमानमें पाये जाते हैं, इतने प्रमाणसहित बनाये
थे या बहुत प्रमाणसहित बनाये थे? यदि इतने प्रमाणसहित ही बनाये थे तो तुम्हारे शास्त्रोंमें
आचारांगादिकके पदोंका प्रमाण अठारह हजार आदि कहा है, सो उनकी विधि मिला दो।
पदका प्रमाण क्या? यदि विभक्तिके अन्तको पद कहोगे तो कहे हुए प्रमाणसे बहुत पद
हो जायेंगे, और यदि प्रमाण पद कहोगे तो उस पदके साधिक (किंचित् अधिक) इक्यावन करोड़
श्लोक हैं। सो यह तो बहुत छोटे शास्त्र हैं, इसलिए बनता नहीं है। तथा आचारांगादिकसे
दशवैकालिकादिका प्रमाण कम कहा है, और तुम्हारे अधिक है, सो किस प्रकार बनता है?
फि र कहोगे — ‘‘आचारांगादिक बड़े थे; कालदोष जानकर उन्हीमेंसे कितने ही सूत्र
निकालकर यह शास्त्र बनाये हैं।’’ तब प्रथम तो टूटक ग्रन्थ प्रमाण नहीं है। तथा ऐसा नियम
है कि — बड़ा ग्रन्थ बनाये तो उसमें सर्व वर्णन विस्तारसहित करते हैं और छोटा ग्रन्थ बनाये
तो यहाँ संक्षिप्त वर्णन करते हैं, परन्तु सम्बन्ध टूटता नहीं है और किसी बड़े ग्रन्थमेंसे थोड़ासा
कथन निकाल लें तो वहाँ सम्बन्ध नहीं मिलेगा — कथनका अनुक्रम टूट जायगा। परन्तु तुम्हारे
सूत्रोंमें तो कथादिकका भी सम्बन्ध मिलता भासित होता है — टूटकपना भासित नहीं होता।
तथा अन्य कवियोंसे गणधर की बुद्धि तो अधिक होगी, उनके बनाये ग्रन्थोंमें थोड़े
शब्दोंमें बहुत अर्थ होना चाहिये; परन्तु अन्य कवियों जैसी भी गम्भीरता नहीं है।
तथा जो ग्रन्थ बनाये वह अपना नाम ऐसा नहीं रखता कि — ‘‘अमुक कहता है,’’
‘‘मैं कहता हूँ’’ ऐसा कहता है; परन्तु तुम्हारे सूत्रोंमें ‘‘हे गौतम!’’ व ‘‘गौतम कहते है’’
ऐसे वचन हैं। परन्तु ऐसे वचन तो तभी सम्भव हैं जब और कोई कर्ता हो। इसलिये
यह सूत्र गणधरकृत नहीं हैं, औरके बनाये गये हैं। गणधर के नामसे कल्पित-रचनाको प्रमाण
कराना चाहते हैं; परन्तु विवेकी तो परीक्षा करके मानते हैं, कहा ही तो नहीं मानते।
तथा वे ऐसा भी कहते है कि — गणधर सूत्रोंके अनुसार कोई दशपूर्वधारी हुए हैं,
उन्होंने यह सूत्र बनाये हैं। वहाँ पूछते हैं — यदि नये ग्रन्थ बनाये हैं तो नया नाम रखना
था, अंगादिकके नाम किसलिये रखे? जैसे — कोई बड़े शाहूकारकी कोठीके नामसे अपना
शाहूकारा प्रगट करे — ऐसा यह कार्य हुआ। सच्चेको तो जिस प्रकार दिगम्बरमें ग्रन्थोंके और