Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 137 of 350
PDF/HTML Page 165 of 378

 

background image
-
पाँचवाँ अधिकार ][ १४७
स्त्रीमुक्तिका निषेध
तथा स्त्रीको मोक्ष कहते हैं; सो जिससे सप्तम नरक गमनयोग्य पाप न हो सके, उससे
मोक्ष का कारण शुद्धभाव कैसे होगा? क्योंकि जिसके भाव दृढ़ हों, वही उत्कृष्ट पाप व
धर्म उत्पन्न कर सकता है। तथा स्त्रीके निःशंक एकान्तमें ध्यान धरना और सर्व परिग्रहादिकका
त्याग करना सम्भव नहीं है।
यदि कहोगेएक समयमें पुरुषवेदी व स्त्रीवेदी व नपुंसकवेदीको सिद्धि होना सिद्धान्तमें
कही है, इसलिये स्त्रीको मोक्ष मानते हैं। परन्तु यहाँ वह भाववेदी है या द्रव्यवेदी है?
यदि भाववेदी है तो हम मानते ही हैं; तथा द्रव्यवेदी है तो पुरुष-स्त्रीवेदी तो लोकमें प्रचुर
दिखाई देते हैं, और नपुंसक तो कोई विरले दिखते हैं; तो एक समयमें मोक्ष जाने वाले
इतने नपुंसक कैसे सम्भव हैं? इसलिये द्रव्यवेदकी अपेक्षा कथन नहीं बनता।
तथा यदि कहोगेनववें गुणस्थान तक वेद कहे हैं; सो भी भाववेदकी अपेक्षा ही
कथन है। द्रव्यवेदकी अपेक्षा हो तो चौदहवें गुणस्थानपर्यन्त वेदका सद्भाव कहना सम्भव
हो।
इसलिये स्त्रीको मोक्षका कहना मिथ्या है।
शूद्रमुक्तिका निषेध
तथा शूद्रोंको मोक्ष कहते हैं; परन्तु चाण्डालादिकको उत्तम कु लवाला गृहस्थ
सन्मानादिकपूर्वक दानादिक कैसे देंगे? लोकविरुद्ध होता है। तथा नीच कुलवालोंके उत्तम
परिणाम नहीं हो सकते। तथा गोत्रकर्मका उदय तो पंचम गुणस्थानपर्यन्त ही है; ऊपरके
गुणस्थान चढ़े बिना मोक्ष कैसे होगा? यदि कहोगे
संयम धारण करनेके पश्चात् उसके उच्च
गोत्रका उदय कहते हैं; तो संयम धारण करनेन करनेकी अपेक्षासे नीच-उच्च गोत्रका उदय
ठहरा। ऐसा होनेसे असंयमी मनुष्य, तीर्थंकर, क्षत्रियादिकको भी नीच गोत्रका उदय ठहरेगा।
यदि उनके कुल- अपेक्षा उच्च गोत्रका उदय कहोगे तो चाण्डालादिकके भी कुल-अपेक्षा ही
नीच गोत्रका उदय कहो। उसका सद्भाव तुम्हारे सूत्रोंमें भी पंचम गुणस्थानपर्यन्त ही कहा
है। सो कल्पित कहनेमें पूर्वापर विरोध होगा ही होगा; इसलिये शूद्रोंको मोक्ष कहना मिथ्या
है।
इस प्रकार उन्होंने सर्वको मोक्षकी प्राप्ति कही; सो उसका प्रयोजन यह है कि सर्वको
भला मानना, मोक्षकी लालच देना और अपने कल्पित मतकी प्रवृत्ति करना। परन्तु विचार
करने पर मिथ्या भासित होता है।