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१४८ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
अछेरोंका निराकरण
तथा उनके शास्त्रोंमें ‘‘अछेरा’’ कहते हैं। वहाँ कहते हैं — हुण्डावसर्पिणीके निमित्तसे
हुए हैं, इनको छेड़ना नहीं। सो कालदोषसे कितनी ही बातें होती हैं, परन्तु प्रमाणविरुद्ध
तो नहीं होतीं। यदि प्रमाणविरुद्ध भी हों तो आकाशके फू ल, गधेके सींग इत्यादिका होना
भी बनेगा; सो सम्भव नहीं है। वे अछेरा कहते हैं सो प्रमाणविरुद्ध हैं। किसलिये? सो
कहते हैंः —
वर्द्धमान जिन कुछ काल ब्राह्मणीके गर्भमें रहे, फि र क्षत्रियाणीके गर्भमें बढ़े ऐसा कहते
हैं। सो किसीका गर्भ किसीके रख देना प्रत्यक्ष भासित नहीं होता, अनुमानादिकमें नहीं आता।
तथा तीर्थंकरके हुआ कहें तो गर्भकल्याणक किसीके घर हुआ, जन्म-कल्याणक किसीके घर
हुआ। कुछ दिन रत्नवृष्टि आदि किसीके घर हुए, कुछ दिन किसीके घर हुए। सोलह स्वप्न
किसीको आये, पुत्र किसीको हुआ, इत्यादि असंभव भासित होता है। तथा माताएँ तो दो
हुईं और पिता तो एक ब्राह्मण ही रहा। जन्मकल्याणादिमें उसका सन्मान नहीं किया, अन्य
कल्पित पिताका सन्मान किया। इस प्रकार तीर्थंकरके दो पिताका कहना महाविपरीत भाषित
होता है। सर्वोत्कृष्ट पद धारकके लिए ऐसे वचन सुनना भी योग्य नहीं है।
तथा तीर्थंकरके भी ऐसी अवस्था हुई तो सर्वत्र ही अन्य स्त्रीका गर्भ अन्य स्त्रीको
रख देना ठहरेगा। तो जैसे वैष्णव अनेक प्रकारसे पुत्र-पुत्रीका उत्पन्न होना बतलाते हैं वैसा
यह कार्य हुआ। सो ऐसे निकृष्ट कालमें जब ऐसा नहीं होता तब वहाँ होना कैसे सम्भव
है? इसलिये यह मिथ्या है।
तथा मल्लि तीर्थंकरको कन्या कहते हैं। परन्तु मुनि, देवादिककी सभामें स्त्रीका स्थिति
करना, उपदेश देना सम्भव नहीं है; व स्त्रीपर्याय हीन है सो उत्कृष्ट तीर्थंकर- पदधारीके नहीं
बनती। तथा तीर्थंकरके नग्नलिंग ही कहते हैं, सो स्त्रीके नग्नपना संभव नहीं है। इत्यादि
विचार करनेसे असंभव भासित होता है।
तथा हरिक्षेत्रके भोगभूमियाको नरकमें गया कहते हैं। सो बन्ध वर्णनमें तो
भोगभूमियाको देवगति, देवायुका ही बन्ध कहते हैं, नरक कैसे गया? सिद्धान्तमें तो
अनन्तकालमें जो बात हो वह भी कहते हैं। जैसे — तीसरे नरकपर्यन्त तीर्थंकर प्रकृतिका
सत्व कहा, भोगभूमियाके नरकायु गतिका बन्ध नहीं कहा। सो केवली भूलते तो नहीं हैं;
इसलिये यह मिथ्या है।
इस प्रकार सर्व अछेरे असम्भव जानना।
तथा वे कहते हैं — इनको छेड़ना नहीं; सो झूठ कहनेवाला इसी प्रकार कहता है।