की; वहाँ उसको संकोच हुआ और न देने पर लोकनिंद्य होनेका भय हुआ, इसलिये उसे
आहार दिया, परन्तु उसके (दातारके) अंतरंग प्राण पीड़ित होनेसे हिंसाका सद्भाव आया।
यदि आप उसके घरमें न जाते, उसीके देनेका उपाय होता तो देता, उसे हर्ष होता। यह
तो दबाकर कार्य कराना हुआ। तथा अपने कार्यके अर्थ याचनारूप वचन है वह पापरूप
है; सो यहाँ असत्य वचन भी हुआ। तथा उसके देनेकी इच्छा नहीं थी, इसने याचना की,
तब उसने अपनी इच्छासे नहीं दिया, संकोचसे दिया इसलिये अदत्तग्रहण भी हुआ। तथा
गृहस्थके घरमें स्त्री जैसी-तैसी बैठी थी और यह चला गया, सो वहाँ ब्रह्मचर्यकी बाड़का
भंग हुआ। तथा आहार लाकर कितने काल तक रखा; आहारादिके रखनेको पात्रादिक रखे
वह परिग्रह हुआ। इस प्रकार पाँच महाव्रतोंका भंग होनेसे मुनिधर्म नष्ट होता है
भी महापाप होता है। और आपके कुछ इच्छा नहीं है, कोई स्वयमेव अपमान करे तो उसके
महाधर्म है; परन्तु यहाँ तो भोजनके लोभके अर्थ याचना करके अपमान कराया इसलिये पाप
ही है, धर्म नहीं है। तथा वस्त्रादिकके अर्थ भी याचना करता है, परन्तु वस्त्रादिक कोई
धर्मका अंग नहीं है, शरीरसुखका कारण है, इसलिये पूर्वोक्त प्रकारसे उसका निषेध जानना।
देखो, अपने धर्मरूप उच्चपदको याचना करके नीचा करते हैं सो उसमें धर्मकी हीनता होती
है।