युगपत् विशेषपनेसे प्रत्यक्ष जानते हैं, अनंतदर्शन द्वारा उनका सामान्य अवलोकन करते हैं,
अनंतवीर्य द्वारा ऐसी सामर्थ्यको धारण करते हैं, अनंतसुख द्वारा निराकुल परमानन्दका अनुभव
करते हैं। पुनश्च, जो सर्वथा सर्व राग-द्वेषादि विकारभावोंसे रहित होकर शांतरसरूप परिणमित
हुए हैं; तथा क्षुधा-तृषादि समस्त दोषोंसे मुक्त होकर देवाधिदेवपनेको प्राप्त हुए हैं; तथा आयुध-
अंबरादिक व अंगविकारादिक जो काम-क्रोधादि निंद्यभावोंके चिह्न उनसे रहित जिनका परम
औदारिक शरीर हुआ है; तथा जिनके वचनोंसे लोकमें धर्मतीर्थ प्रवर्तता है, जिसके द्वारा
जीवोंका कल्याण होता है; तथा जिनके लौकिक जीवोंको प्रभुत्व माननेके कारणरूप अनेक
अतिशय और नानाप्रकारके वैभवका संयुक्तपना पाया जाता है; तथा जिनका अपने हितके
अर्थ गणधर
अघातिकर्मोंके भी भस्म होने पर परम औदारिक शरीरको भी छोड़कर ऊर्ध्वगमन स्वभावसे
लोकके अग्रभागमें जाकर विराजमान हुए; वहाँ जिनको समस्त परद्रव्योंका सम्बन्ध छूटनेसे
मुक्त अवस्थाकी सिद्धि हुई, तथा जिनके चरम शरीरसे किंचित् न्यून पुरुषाकारवत् आत्मप्रदेशोंका
आकार अवस्थित हुआ, तथा जिनके प्रतिपक्षी कर्मोंका नाश हुआ, इसलिये समस्त सम्यक्त्व-
ज्ञान-दर्शनादिक आत्मिक गुण सम्पूर्णतया अपने स्वभावको प्राप्त हुए हैं, तथा जिनके नोकर्मका
सम्बन्ध दूर हुआ, इसलिये समस्त अमूर्त्तत्वादिक आत्मिक धर्म प्रगट हुए हैं, तथा जिनके
भावकर्मका अभाव हुआ, इसलिये निराकुल आनन्दमय शुद्धस्वभावरूप परिणमन हो रहा है;
तथा जिनके ध्यान द्वारा भव्य जीवोंको स्वद्रव्य
साधने योग्य जो अपना शुद्धस्वरूप उसे दर्शानेको प्रतिबिम्ब समान हैं तथा जो कृतकृत्य हुए
हैं, इसलिये ऐसे ही अनंतकाल पर्यंत रहते हैं।