महिमा कैसे जानें? इसलिये इसप्रकार सच्ची परीक्षा नहीं होती। यहाँ तो अनेकान्तरूप सच्चे
जीवादितत्त्वोंका निरूपण है और सच्चा रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग दिखलाया है। उसीसे जैनशास्त्रोंकी
उत्कृष्टता है, उसे नहीं पहिचानते। क्योंकि यह पहिचान हो जाये तो मिथ्यादृष्टि रहती नहीं।
है। सच्ची प्रतीतिके बिना सम्यक्त्वकी प्राप्ति नहीं होती; इसलिये मिथ्यादृष्टि ही है।
लगाता है, औरोंको उपदेश देता है; परन्तु उन तत्त्वोंका भाव भासित नहीं होता; और यहाँ
उस वस्तुके भावका ही नाम तत्त्व कहा है। सो भाव भासित हुए बिना तत्त्वार्थश्रद्धान कैसे
होगा? भाव भासना क्या है? सो कहते हैंः
निर्णय करके नहीं मानता है; इसलिये उसके चतुरपना नहीं होता। उसी प्रकार कोई जीव
सम्यक्त्वी होनेके अर्थ शास्त्र द्वारा जीवादिक तत्त्वोंका स्वरूप सीख लेता है; परन्तु उनके
स्वरूपको नहीं पहिचानता है। स्वरूपको पहिचाने बिना अन्य तत्त्वोंको अन्य तत्त्वरूप मान
लेता है, अथवा सत्य भी मानता है तो निर्णय करके नहीं मानता; इसलिये उसके सम्यक्त्व
नहीं होता। तथा जैसे कोई शास्त्रादि पढ़ा हो या न पढ़ा हो; परन्तु स्वरादिके स्वरूपको
पहिचानता है तो वह चतुर ही है। उसी प्रकार शास्त्र पढ़ा हो या न पढ़ा हो; यदि
जीवादिकके स्वरूपको पहिचानता है तो वह सम्यग्दृष्टि ही है। जैसे हिरन स्वर