Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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सातवाँ अधिकार ][ २४७
मानता है; तथा जिनसे सुख-दुःखका होना माना जाये उनमें इष्ट-अनिष्ट बुद्धिसे राग-द्वेषरूप
अभिप्रायका अभाव नहीं होता; और जहाँ राग-द्वेष हैं वहाँ चारित्र नहीं होता। इसलिये यह
द्रव्यलिंगी विषयसेवन छोड़कर तपश्चरणादि करता है तथापि असंयमी ही है। सिद्धान्तमें असंयत
व देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे भी इसे हीन कहा है; क्योंकि उनके चौथा-पाँचवाँ गुणस्थान है और
इसके पहला ही गुणस्थान है।
यहाँ कोई कहे कि असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके कषायोंकी प्रवृत्ति विशेष है और
द्रव्यलिंगी मुनिके थोड़ी है; इसीसे असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टि तो सोलहवें स्वर्गपर्यन्त ही
जाते हैं और द्रव्यलिंगी अन्तिम ग्रैवेयकपर्यन्त जाता है। इसलिये भावलिंगी मुनिसे तो
द्रव्यलिंगीको हीन कहो, उसे असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे हीन कैसे कहा जाय?
समाधानःअसंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके कषयोंकी प्रवृत्ति तो है; परन्तु श्रद्धानमें
किसी भी कषायके करनेका अभिप्राय नहीं है। तथा द्रव्यलिंगीके शुभकषाय करनेका अभिप्राय
पाया जाता हैं, श्रद्धानमें उन्हें भला जानता है; इसलिये श्रद्धानकी अपेक्षा असंयत सम्यग्दृष्टिसे
भी इसके अधिक कषाय है।
तथा द्रव्यलिंगीके योगोंकी प्रवृत्ति शुभरूप बहुत होती है और अघातिकर्मोंमें पुण्य-
पापबन्धका विशेष शुभ-अशुभ योगोंके अनुसार है, इसलिये वह अन्तिम ग्रैवेयकपर्यन्त पहुँचता
है; परन्तु वह कुछ कार्यकारी नहीं है, क्योंकि अघातिया कर्म आत्मगुणके घातक नहीं हैं,
उनके उदयसे उच्च-नीचपद प्राप्त किये तो क्या हुआ? वे तो बाह्य संयोगमात्र संसारदशाके
स्वांग हैं; आप तो आत्मा है; इसलिये आत्मगुणके घातक जो घातियाकर्म हैं उनकी हीनता
कार्यकारी है।
उन घातिया कर्मोंका बन्ध बाह्यप्रवृत्तिके अनुसार नहीं है, अंतरंग कषायशक्तिके अनुसार
है; इसलिये द्रव्यलिंगीकी अपेक्षा असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके घातिकर्मोंका बन्ध थोड़ा है।
द्रव्यलिंगीके तो सर्व घातिकर्मोंका बन्ध बहुत स्थिति
अनुभाग सहित है और असंयत व
देशसंयत सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वअनन्तानुबन्धी आदि कर्मोंका तो बन्ध है ही नहीं, अवशेषोंका
बन्ध होता है वह अल्प स्थितिअनुभाग सहित होता है। तथा द्रव्यलिंगीके कदापि गुणश्रेणी
निर्जरा नहीं होती, सम्यग्दृष्टिके कदाचित् होती है और देश व सकल संयम होने पर निरन्तर
होती है। इसीसे यह मोक्षमार्गी हुआ है। इसलिये द्रव्यलिंगी मुनिको शास्त्रमें असंयत व
देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे हीन कहा है।
समयसार शास्त्रमें द्रव्यलिंगी मुनिकी हीनता गाथा, टीका और कलशोंमें प्रगट की है।