Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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सातवाँ अधिकार ][ २६३
जिन्हें करण प्रारम्भ किये द्वितीयादि समय हुए हों, उनके उस समयवालोंके परिणाम तो परस्पर
समान या असमान होते हैं; परन्तु ऊपरके समयवालोंके परिणाम उस समय समान सर्वथा नहीं
होते, अपूर्व ही होते हैं। इसप्रकार अपूर्वकरण
जानना।
तथा जिसमें समान समयवर्ती जीवोंके परिणाम समान ही होते हैं, निवृत्ति अर्थात् परस्पर
भेद उससे रहित होते हैं; जैसे उस करणके पहले समयमें सर्व जीवोंके परिणाम परस्पर समान
होते हैं, उसी प्रकार द्वितीयादि समयोंमें परस्पर समानता जानना; तथा प्रथमादि समयवालोंसे
द्वितीयादि समयवालोंके अनन्तगुनी विशुद्धता सहित होते हैं। इसप्रकार अनिवृत्तिकरण
जानना।
इस प्रकार ये तीन करण जानना।
वहाँ पहले अन्तर्मुहूर्त कालपर्यंत अधःकरण होता है। वहाँ चार आवश्यक होते हैं
समय-समय अनन्तगुनी विशुद्धता होती है; तथा एक (एक) अन्तर्मुहूर्तसे नवीन बन्धकी
स्थिति घटती जाती है, सो स्थितिबन्धापसरण है; तथा प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग समय-
समय अनन्तगुना बढ़ता है; और अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग-बन्ध समय-समय अनन्तवें भाग
होता है
इसप्रकार चार आवश्यक होते हैं।
वहाँ पश्चात् अपूर्वकरण होता है। उसका काल अधःकरणके कालके संख्यातवें भाग
है। उसमें ये आवश्यक और होते हैंएक-एक अन्तर्मुहूर्तसे सत्ताभूत पूर्वकर्मकी स्थिति थी,
उसको घटाता है सो स्थितिकाण्डकघात है; तथा उससे छोटे एक-एक अन्तर्मुहूर्तसे पूर्वकर्मके
अनुभागको घटाता है सो अनुभागकाण्डकघात है; तथा गुणश्रेणीके कालमें क्रमशः असंख्यातगुने
प्रमाणसहित कर्मोंको निर्जराके योग्य करता है सो गुणश्रेणी निर्जरा है। तथा गुण-संक्रमण
यहाँ नहीं होता, परन्तु अन्यत्र अपूर्वकरण हो वहाँ होता है।
१. समए समए भिण्णा भावा तम्हा अपुव्वकरणो हु।।३६।। (लब्धिसार)
जम्हा उवरिमभावा हेट्ठिमभावेहिं णत्थि सरिसत्तं।
तम्हा बिदियं करणं अपुव्वकरणेत्ति णिद्दिट्ठं।।५१।। (लब्धिसार)
करणं परिणामो अपुव्वाणि च ताणि करणाणि च अपुव्वकरणाणि,
असमाणपरिणामा त्ति जं उत्तं होदि।।
(धवला१-९-८-४)
२. एगसमए वट्टंताणं जीवाणं परिणामेहि ण विज्जदे णियट्टी णिव्वित्ती जत्थ ते अणियट्टीपरिणामा।
(धवला १-९-८-४)
एक्कम्हि कालसमये संठाणादीहिं जह णिवट्टंति।
ण णिवट्टंति तहा विय परिणामेहिं मिहो जेहिं।।५६।।
(गोम्मटसार जीवकाण्ड)