अन्तरकरण
है। तथा अन्तरकरण करनेके पश्चात् उपशमकरण करता है। अन्तरकरण द्वारा अभावरूप
किये निषेकोंके ऊपरवाले जो मिथ्यात्वके निषेक हैं उनको उदय आनेके अयोग्य बनाता है।
इत्यादिक क्रिया द्वारा अनिवृत्तिकरणके अन्तसमयके अनन्तर जिन निषेकोंका अभाव किया था,
उनका काल आये, तब निषेकोंके बिना उदय किसका आयेगा? इसलिये मिथ्यात्वका उदय
न होनेसे प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है। अनादि मिथ्यादृष्टिके सम्यक्त्व मोहनीय और
मिश्र मोहनीयकी सत्ता नहीं है, इसलिये वह एक मिथ्यात्वकर्मका ही उपशम करके उपशम
सम्यग्दृष्टि होता है। तथा कोई जीव सम्यक्त्व पाकर फि र भ्रष्ट होता है, उसकी दशा भी
अनादि मिथ्यादृष्टि जैसी हो जाती है।
समाधान
सन्देह हुआ कि इसप्रकार है या इसप्रकार? अथवा ‘न जाने किस प्रकार है?’ अथवा उस
शिक्षाको झूठ जानकर उससे विपरीतता हुई तब उसे अप्रतीति हुई और उसके उस शिक्षाकी
प्रतीतिका अभाव हो गया। अथवा पहले तो अन्यथा प्रतीति थी ही, बीचमें शिक्षाके विचारसे
यथार्थ प्रतीति हुई थी; परन्तु उस शिक्षाका विचार किये बहुत काल हो गया, तब उसे भूलकर
जैसी पहले अन्यथा प्रतीति थी वैसी ही स्वयमेव हो गई। तब उस शिक्षाकी प्रतीतिका अभाव
हो जाता है। अथवा यथार्थ प्रतीति पहले तो की, पश्चात् न तो कोई अन्यथा विचार किया,
न बहुत काल हुआ; परन्तु वैसे ही कर्मोदयसे होनहारके अनुसार स्वयमेव ही उस प्रतीतिका
अभाव होकर अन्यथापना हुआ। ऐसे अनेक प्रकारसे उस शिक्षाकी यथार्थ प्रतीतिका अभाव
हैं।