Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 270 of 350
PDF/HTML Page 298 of 378

 

background image
-
२८० ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
इस तरह दो प्रकारसे चरणानुयोगमें उपदेश जानना।
तथा चरणानुयोगमें तीव्र कषायोंका कार्य छुड़ाकर मंदकषायरूप कार्य करनेका उपदेश
देते हैं। यद्यपि कषाय करना बुरा ही है, तथापि सर्व कषाय न छूटते जानकर जितने कषाय
घटें उतना ही भला होगा
ऐसा प्रयोजन वहाँ जानना। जैसेजिन जीवोंके आरम्भादिक
करनेकी व मन्दिरादि बनवानेकी, व विषय सेवनकी व क्रोधादि करनेकी इच्छा सर्वथा दूर
होती न जाने, उन्हें पूजा-प्रभावनादिक करनेका व चैत्यालयादि बनवानेका व जिनदेवादिकके
आगे शोभादिक, नृत्य-गानादिक करनेका व धर्मात्मा पुरुषोंकी सहाय आदि करनेका उपदेश
देते हैं; क्योंकि इनमें परम्परा कषायका पोषण नहीं होता। पापकार्योंमें परम्परा कषायका
पोषण होता है, इसलिये पापकार्योंसे छुड़ाकर इन कार्योंमें लगाते हैं। तथा थोड़ा-बहुत जितना
छूटता जाने उतना पापकार्य छुड़ाकर उन्हें सम्यक्त्व व अणुव्रतादि पालनेका उपदेश देते हैं।
तथा जिन जीवोंके सर्वथा आरम्भादिककी इच्छा दूर हुई है, उनको पूर्वोक्त पूजादिक कार्य
व सर्व पापकार्य छुड़ाकर महाव्रतादि क्रियाओंका उपदेश देते हैं। तथा किंचित् रागादिक छूटते
जानकर उन्हें दया, धर्मोपदेश, प्रतिक्रमणादि कार्य करनेका उपदेश देते हैं। जहाँ सर्व राग
दूर हुआ हो वहाँ कुछ करनेका कार्य ही नहीं रहा; इसलिये उन्हें कुछ उपदेश ही नहीं है।
ऐसा क्रम जानना।
तथा चरणानुयोगमें कषायी जीवोंको कषाय उत्पन्न करके भी पापको छुड़ाते हैं और
धर्ममें लगाते हैं। जैसेपापका फल नरकादिकके दुःख दिखाकर उनको भय कषाय उत्पन्न
करके पापकार्य छुड़वाते हैं, तथा पुण्यके फल स्वर्गादिकके सुख दिखाकर उन्हें लोभ कषाय
उत्पन्न करके धर्मकार्योंमें लगाते हैं। तथा यह जीव इन्द्रियविषय, शरीर, पुत्र, धनादिकके
अनुरागसे पाप करता है, धर्म-पराङ्मुख रहता है; इसलिये इन्द्रियविषयोंको मरण, क्लेशादिके
कारण बतलाकर उनमें अरति कषाय कराते हैं। शरीरादिको अशुचि बतलाकर वहाँ जुगुप्सा
कषाय कराते हैं; पुत्रादिकको धनादिकके ग्राहक बतलाकर वहाँ द्वेष कराते हैं; तथा धनादिकको
मरण, क्लेशादिकका कारण बतलाकर वहाँ अनिष्टबुद्धि कराते हैं।
इत्यादि उपायोंसे विषयादिमें
तीव्र राग दूर होनेसे उनके पापक्रिया छूटकर धर्ममें प्रवृत्ति होती है। तथा नामस्मरण,
स्तुतिकरण, पूजा, दान, शीलादिकसे इस लोकमें दारिद्रय कष्ट दूर होते हैं, पुत्र-धनादिककी
प्राप्ति होती है,
इसप्रकार निरूपण द्वारा उनके लोभ उत्पन्न करके उन धर्मकार्योंमें लगाते हैं।
इसी प्रकार अन्य उदाहरण जानना।
यहाँ प्रश्न है कि कोई कषाय छुड़ाकर कोई कषाय करानेका प्रयोजन क्या?