Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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आठवाँ अधिकार ][ २८१
समाधानः जैसे रोग तो शीतांग भी है और ज्वर भी है; परन्तु किसीका शीतांगसे
मरण होता जाने, वहाँ वैद्य उसको ज्वर होनेका उपाय करता है और ज्वर होनेके पश्चात्
उसके जीनेकी आशा हो तब बादमें ज्वरको भी मिटानेका उपाय करता है। उसी प्रकार
कषाय तो सभी हेय हैं; परन्तु किन्हीं जीवोंके कषायोंसे पापकार्य होता जाने, वहाँ श्रीगुरु
उनको पुण्यकार्यके कारणभूत कषाय होनेका उपाय करते हैं, पश्चात् उसके सच्ची धर्मबुद्धि
हुई जानें तब बादमें वह कषाय मिटानेका उपाय करते हैं। ऐसा प्रयोजन जानना।
तथा चरणानुयोगमें जैसे जीव पाप छोड़कर धर्ममें लगें वैसे अनेक युक्तियों द्वारा वर्णन
करते हैं। वहाँ लौकिक दृष्टान्त, युक्ति, उदाहरण, न्यायवृत्तिके द्वारा समझाते हैं व कहीं
अन्यमतके भी उदाहरणादि कहते हैं। जैसे
‘सूक्तमुक्तावली’ में लक्ष्मीको कमलवासिनी कही
व समुद्रमें विष और लक्ष्मी उत्पन्न हुए उस अपेक्षा उसे विषकी भगिनी कही है। इसीप्रकार
अन्यत्र कहते हैं।
वहाँ कितने ही उदाहरणादि झूठे भी हैं; परन्तु सच्चे प्रयोजनका पोषण करते हैं, इसलिये
दोष नहीं है।
यहाँ कोई कहे कि झूठका तो दोष लगता है?
उसका उत्तरः
यदि झूठ भी है और सच्चे प्रयोजनका पोषण करे तो उसे झूठ नहीं
कहते। तथा सच भी है और झूठे प्रयोजनका पोषण करे तो वह झूठ ही है।
अलंकारयुक्तिनामादिकमें वचन अपेक्षा झूठ-सच नहीं है, प्रयोजन अपेक्षा झूठ-सच
है। जैसेतुच्छ शोभासहित नगरीको इन्द्रपुरीके समान कहते हैं सो झूठ है, परन्तु शोभाके
प्रयोजनका पोषण करता है, इसलिये झूठ नहीं है। तथा ‘इस नगरीमें छत्रको ही दंड है
अन्यत्र नहीं है’
ऐसा कहा सो झूठ है; अन्यत्र भी दण्ड देना पाया जाता है, परन्तु वहाँ
अन्यायवान थोड़े हैं और न्यायवानको दण्ड नहीं देते, ऐसे प्रयोजनका पोषण करता है, इसलिये
झूठ नहीं है। तथा बृहस्पतिका नाम ‘सुरगुरु’ लिखा है व मंगलका नाम ‘कुज’ लिखा है
सो ऐसे नाम अन्यमत अपेक्षा हैं।
इनका अक्षरार्थ है सो झूठा है; परन्तु वह नाम उस
पदार्थका अर्थ प्रगट करता है, इसलिये झूठ नहीं है।
इसप्रकार अन्य मतादिकके उदाहरणादि देते हैं सो झूठ हैं; परन्तु उदाहरणादिकका
तो श्रद्धान कराना है नहीं, श्रद्धान तो प्रयोजनका कराना है और प्रयोजन सच्चा है, इसलिये
दोष नहीं है।
तथा चरणानुयोगमें छद्मस्थकी बुद्धिगोचर स्थूलपनेकी अपेक्षासे लोकप्रवृत्तिकी मुख्यता