Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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२८४ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
ध्यान-अध्ययनादि विशेष करता है वह उत्कृष्ट तपस्वी है तथापि यहाँ चरणानुयोगमें बाह्यतपकी
ही प्रधानता है, इसलिये उसीको तपस्वी कहते हैं। इस प्रकार अन्य नामादिक जानना।
ऐसे ही अन्य प्रकार सहित चरणानुयोगमें व्याख्यानका विधान जानना।
द्रव्यानुयोगके व्याख्यानका विधान
अब, द्रव्यानुयोगमें व्याख्यानका विधान कहते हैंः
जीवोंके जीवादि द्रव्योंका यथार्थ श्रद्धान जिस प्रकार हो उस प्रकार विशेष, युक्ति,
हेतु, दृष्टान्तादिकका यहाँ निरूपण करते हैं, क्योंकि इसमें यथार्थ श्रद्धान करानेका प्रयोजन
है। वहाँ यद्यपि जीवादि वस्तु अभेद हैं तथापि उनमें भेदकल्पना द्वारा व्यवहारसे द्रव्य-गुण-
पर्यायादिकके भेदोंका निरूपण करते हैं। तथा प्रतीति करानेके अर्थ अनेक युक्तियों द्वारा
उपदेश देते हैं अथवा प्रमाण-नय द्वारा उपदेश देते हैं वह भी युक्त है, तथा वस्तुके अनुमान
प्रत्यभिज्ञानादिक करानेको हेतुदृष्टान्तादिक देते हैं; इसप्रकार यहाँ वस्तुकी प्रतीति करानेको
उपदेश देते हैं।
तथा यहाँ मोक्षमार्गका श्रद्धान करानेके अर्थ जीवादि तत्त्वोंका विशेष, युक्ति, हेतु,
दृष्टान्तादि द्वारा निरूपण करते हैं। वहाँ स्व-पर भेदविज्ञानादिक जिस प्रकार हों उस प्रकार
जीव-अजीवका निर्णय करते हैं; तथा वीतरागभाव जिस प्रकार हो उस प्रकार आस्रवादिकका
स्वरूप बतलाते हैं; और वहाँ मुख्यरूपसे ज्ञान-वैराग्यके कारण जो आत्मानुभवनादिक उनकी
महिमा गाते हैं।
तथा द्रव्यानुयोगमें निश्चय अध्यात्म-उपदेशकी प्रधानता हो, वहाँ व्यवहारधर्मका भी
निषेध करते हैं। जो जीव आत्मानुभवका उपाय नहीं करते और बाह्य क्रियाकाण्डमें मग्न
हैं, उनको वहाँसे उदास करके आत्मानुभवनादिमें लगानेको व्रत-शील-संयमादिकका हीनपना प्रगट
करते हैं। वहाँ ऐसा नहीं जान लेना कि इनको छोड़कर पापमें लगना; क्योंकि उस उपदेशका
प्रयोजन अशुभमें लगानेका नहीं है, शुद्धोपयोगमें लगानेको शुभोपयोगका निषेध करते हैं।
यहाँ कोई कहे कि अध्यात्मशास्त्रमें पुण्य-पाप समान कहे हैं, इसलिये शुद्धोपयोग हो
तो भला ही है, न हो तो पुण्यमें लगो या पापमें लगो?
उत्तरःजैसे शूद्र जातिकी अपेक्षा जाट, चांडाल समान कहे हैं; परन्तु चांडालसे जाट
कुछ उत्तम उत्तम है; वह अस्पृश्य है, यह स्पृश्य है; उसी प्रकार बन्ध कारणकी अपेक्षा
पुण्य-पाप समान हैं; परन्तु पापसे पुण्य कुछ भला है; वह तीव्रकषायरूप है, यह मन्दकषायरूप
है; इसलिये पुण्य छोड़कर पापमें लगना युक्त नहीं है
ऐसा जानना।