Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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आठवाँ अधिकार ][ २८३
किया, उसरूप मनका विकल्प न करना सो मनसे त्याग है, वचन न बोलना सो वचनसे
त्याग है, काय द्वारा नहीं प्रवर्तना सो कायसे त्याग है। इसप्रकार अन्य त्याग व ग्रहण होता
है सो ऐसी पद्धति सहित ही होता है ऐसा जानना।
यहाँ प्रश्न है कि करणानुयोगमें तो केवलज्ञान-अपेक्षा तारतम्य कथन है, वहाँ छठवें
गुणस्थानमें सर्वथा बारह अविरतियोंका अभाव कहा, सो किस प्रकार कहा?
उत्तरःअविरति भी योगकषायमें गर्भित थी, परन्तु वहाँ भी चरणानुयोगकी अपेक्षा
त्यागका अभाव उसका ही नाम अविरति कहा है, इसलिये वहाँ उनका अभाव है। मन-
अविरतिका अभाव कहा, सो मुनिको मनके विकल्प होते हैं; परन्तु स्वेच्छाचारी मनकी पापरूप
प्रवृत्तिके अभावसे मन-अविरतिका अभाव कहा है
ऐसा जानना।
तथा चरणानुयोगमें व्यवहारलोकप्रवृत्तिकी अपेक्षा ही नामादिक कहते हैं। जिस
प्रकार सम्यक्त्वीको पात्र कहा तथा मिथ्यात्वीको अपात्र कहा; सो यहाँ जिसके जिनदेवादिकका
श्रद्धान पाया जाये वह तो सम्यक्त्वी, जिसके उनका श्रद्धान नहीं है वह मिथ्यात्वी जानना।
क्योंकि दान देना चरणानुयोगमें कहा है, इसलिये चरणानुयोगकी ही अपेक्षा सम्यक्त्व-मिथ्यात्व
ग्रहण करना। करणानुयोगकी अपेक्षा सम्यक्त्व-मिथ्यात्व ग्रहण करनेसे वही जीव ग्यारहवें
गुणस्थानमें था और वही अन्तर्मुहूर्तमें पहले गुणस्थानमें आये, तो वहाँ दातार पात्र-अपात्रका
कैसे निर्णय कर सके?
तथा द्रव्यानुयोगकी अपेक्षा सम्यक्त्व-मिथ्यात्व ग्रहण करने पर मुनिसंघमें द्रव्यलिंगी भी
हैं और भावलिंगी भी हैं; सो प्रथम तो उनका ठीक (निर्णय) होना कठिन है; क्योंकि बाह्य
प्रवृत्ति समान है; तथा यदि कदाचित् सम्यक्त्वीको किसी चिह्न द्वारा ठीक (निर्णय) हो जाये
और वह उसकी भक्ति न करे तो औरोंको संशय होगा कि इसकी भक्ति क्यों नहीं की?
इसप्रकार उसका मिथ्यादृष्टिपना प्रगट हो तब संघमें विरोध उत्पन्न हो; इसलिये यहाँ
व्यवहारसम्यक्त्व-मिथ्यात्वकी अपेक्षा कथन जानना।
यहाँ कोई प्रश्न करेसम्यक्त्वी तो द्रव्यलिंगीको अपनेसे हीनगुणयुक्त मानता है, उसकी
भक्ति कैसे करे?
समाधानःव्यवहारधर्मका साधन द्रव्यलिंगीके बहुत है और भक्ति करना भी व्यवहार
ही है। इसलिये जैसेकोई धनवान हो, परन्तु जो कुलमें बड़ा हो उसे कुल अपेक्षा बड़ा
जानकर उसका सत्कार करता है; उसी प्रकार आप सम्यक्त्वगुण सहित है, परन्तु जो
व्यवहारधर्ममें प्रधान हो उसे व्यवहारधर्मकी अपेक्षा गुणाधिक मानकर उसकी भक्ति करता है,
ऐसा जानना। इसीप्रकार जो जीव बहुत उपवासादि करे उसे तपस्वी कहते हैं; यद्यपि कोई