Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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२९६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा एक ही भावकी कहीं तो उससे उत्कृष्ट भावकी अपेक्षा निन्दा की हो और कहीं
उससे हीन भावकी अपेक्षासे प्रशंसा की हो वहाँ विरुद्ध नहीं जानना। जैसेकिसी
शुभक्रियाकी जहाँ निन्दा की हो वहाँ तो उससे ऊँची शुभक्रिया व शुद्धभावकी अपेक्षा जानना
और जहाँ प्रशंसा की हो वहाँ उससे नीची क्रिया व अशुभक्रियाकी अपेक्षा जानना। इसी
प्रकार अन्यत्र जानना।
तथा इसप्रकार किसी जीवकी ऊँचे जीवकी अपेक्षासे निन्दा की हो वहाँ सर्वथा निन्दा
नहीं जानना और किसीकी नीचे जीवकी अपेक्षासे प्रशंसा की हो सो सर्वथा प्रशंसा नहीं जानना;
परन्तु यथासम्भव उसका गुण-दोष जान लेना।
इसीप्रकार अन्य व्याख्यान जिस अपेक्षा सहित किये हों उस अपेक्षासे उनका अर्थ
समझना।
तथा शास्त्रमें एक ही शब्दका कहीं तो कोई अर्थ होता है, कहीं कोई अर्थ होता है;
वहाँ प्रकरण पहिचानकर उसका सम्भवित अर्थ जानना। जैसेमोक्षमार्गमें सम्यग्दर्शन कहा, वहाँ
दर्शन शब्दका अर्थ श्रद्धान है और उपयोगवर्णनमें दर्शन शब्दका अर्थ वस्तुका सामान्य स्वरूप
ग्रहणमात्र है, तथा इन्द्रियवर्णनमें दर्शन शब्दका अर्थ नेत्र द्वारा देखना मात्र है। तथा जैसे सूक्ष्म
और बादरका अर्थ
वस्तुओंके प्रमाणादिक कथनमें छोटे प्रमाणसहित हो उसका नाम सूक्ष्म और
बड़े प्रमाणसहित हो उसका नाम बादरऐसा होता है। तथा पुद्गलस्कंधादिके कथनमें इन्द्रियगम्य
न हो वह सूक्ष्म और इन्द्रियगम्य हो वह बादरऐसा अर्थ है। जीवादिकके कथनमें ऋद्धि आदिके
निमित्त बिना स्वयमेव न रुके उसका नाम सूक्ष्म और रुके उसका नाम बादरऐसा अर्थ है।
वस्त्रादिकके कथनमें महीनका नाम सूक्ष्म और मोटेका नाम बादरऐसा अर्थ है।
तथा प्रत्यक्ष शब्दका अर्थ लोकव्यवहारमें तो इन्द्रिय द्वारा जाननेका नाम प्रत्यक्ष है,
प्रमाण भेदोंमें स्पष्ट प्रतिभासका नाम प्रत्यक्ष है, आत्मानुभवनादिमें अपनेमें अवस्था हो उसका
नाम प्रत्यक्ष है। तथा जैसे
मिथ्यादृष्टिके अज्ञान कहा, वहाँ सर्वथा ज्ञानका अभाव नहीं
जानना, सम्यग्ज्ञानके अभावसे अज्ञान कहा है। तथा जिसप्रकार उदीरणा शब्दका अर्थ जहाँ
देवादिकके उदीरणा नहीं कही वहाँ तो अन्य निमित्तसे मरण हो उसका नाम उदीरणा है और
दस करणोंके कथनमें उदीरणाकरण देवायुके भी कहा है, वहाँ ऊपरके निषेकोंका द्रव्य
उदयावलीमें दिया जाये उसका नाम उदीरणा है। इसीप्रकार अन्यत्र यथासम्भव अर्थ जानना।
तथा एक ही शब्दके पूर्व शब्द जोड़नेसे अनेक प्रकार अर्थ होते हैं व उसी शब्दके
अनेक अर्थ हैं; वहाँ जैसा सम्भव हो वैसा अर्थ जानना। जैसे‘जीते’ उसका नाम ‘जिन’