Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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आठवाँ अधिकार ][ २९५
पहले अनुयोगोंके उपदेश विधानमें कई उदाहरण कहे हैं, वह जानना अथवा अपनी
बुद्धिसे समझ लेना।
तथा एक ही अनुयोगमें विवक्षावश अनेकरूप कथन करते हैं। जैसेकरणानुयोगमें
प्रमादोंका सातवें गुणस्थानमें अभाव कहा, वहाँ कषायादिक प्रमादके भेद कहे; तथा वहाँ
कषायादिकका सद्भाव दसवें आदि गुणस्थान पर्यन्त कहा, वहाँ विरुद्ध नहीं जानना; क्योंकि
यहाँ प्रमादोंमें तो जिन शुभाशुभभावोंके अभिप्राय सहित कषायादिक होते हैं उनका ग्रहण है
और सातवें गुणस्थानमें ऐसा अभिप्राय दूर हुआ है, इसलिये उनका वहाँ अभाव कहा है।
तथा सूक्ष्मादिभावोंकी अपेक्षा उन्हींका दसवें आदि गुणस्थानपर्यन्त सद्भाव कहा है।
तथा चरणानुयोगमें चोरी, परस्त्री आदि सप्तव्यसनका त्याग पहली प्रतिमामें कहा है,
तथा वहीं उनका त्याग दूसरी प्रतिमामें कहा है, वहाँ विरुद्ध नहीं जानना; क्योंकि सप्तव्यसनमें
तो चोरी आदि कार्य ऐसे ग्रहण किये हैं जिनसे दंडादिक पाता है, लोकमें अति निन्दा होती
है। तथा व्रतोंमें ऐसे चोरी आदि त्याग करने योग्य कहे हैं कि जो गृहस्थधर्मसे विरुद्ध
होते हैं व किंचित् लोकनिंद्य होते हैं
ऐसा अर्थ जानना। इसीप्रकार अन्यत्र जानना।
तथा नाना भावोंकी सापेक्षतासे एक ही भावका अन्य-अन्य प्रकारसे निरूपण करते
हैं। जैसेकहीं तो महाव्रतादिकको चारित्रके भेद कहा, कहीं महाव्रतादि होने पर भी
द्रव्यलिंगीको असंयमी कहा, वहाँ विरुद्ध नहीं जानना; क्योंकि सम्यग्ज्ञान सहित महाव्रतादिक
तो चारित्र हैं और अज्ञानपूर्वक व्रतादिक होने पर भी असंयमी ही है।
तथा जिसप्रकार पाँच मिथ्यात्वोंमें भी विनय कहा है और बारह प्रकारके तपोंमें भी
विनय कहा है वहाँ विरुद्ध नहीं जानना, क्योंकि जो विनय करनेयोग्य नहीं हैंउनकी भी
विनय करके धर्म मानना वह तो विनय मिथ्यात्व है और धर्मपद्धतिसे जो विनय करने योग्य
हैं, उनकी यथायोग्य विनय करना सो विनय तप है।
तथा जिसप्रकार कहीं तो अभिमानकी निन्दा की और कहीं प्रशंसा की, वहाँ विरुद्ध
नहीं जानना; क्योंकि मान कषायसे अपनेको ऊँचा मनवानेके अर्थ विनयादि न करे वह अभिमान
निंद्य ही है और निर्लोभपनेसे दीनता आदि न करे वह अभिमान प्रशंसा योग्य है।
तथा जैसे कहीं चतुराई की निन्दा की, कहीं प्रशंसा की वहाँ विरुद्ध नहीं जानना;
क्योंकि माया कषायसे किसीको ठगनेके अर्थ चतुराई करें वह तो निंद्य ही है और विवेक
सहित यथासम्भव कार्य करनेमें जो चतुराई हो वह श्लाघ्घ ही है। इसीप्रकार अन्यत्र जानना।