Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३१२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
विचारशक्तिरहित जो एकेन्द्रियादिक हैं, उनके तो उपदेश समझनेका ज्ञान ही नहीं है;
और तीव्र रागादिसहित जीवोंका उपयोग उपदेशमें लगता नहीं है। इसलिये जो जीव
विचारशक्तिसहित हों, तथा जिनके रागादि मन्द हों; उन्हें उपदेशके निमित्तसे धर्मकी प्राप्ति हो
जाये तो उनका भला हो; तथा इसी अवसरमें पुरुषार्थ कार्यकारी है।
एकेन्द्रियादिक तो धर्मकार्य करनेमें समर्थ ही नहीं हैं, कैसे पुरुषार्थ करें? और
तीव्रकषायी पुरुषार्थ करे तो वह पापका ही करे, धर्मकार्यका पुरुषार्थ हो नहीं सकता।
इसलिये जो विचारशक्तिसहित हो और जिसके रागादिक मन्द होंवह जीव पुरुषार्थसे
उपदेशादिकके निमित्तसे तत्त्वनिर्णयादिमें उपयोग लगाये तो उसका उपयोग वहाँ लगे और तब
उसका भला हो। यदि इस अवसरमें भी तत्त्वनिर्णय करनेका पुरुषार्थ न करे, प्रमादसे काल
गँवाये
या तो मन्दरागादि सहित विषयकषायोंके कार्योंमें ही प्रवर्ते, या व्यवहारधर्मकार्योंमें प्रवर्ते;
तब अवसर तो चला जायेगा और संसारमें ही भ्रमण होगा।
तथा इस अवसरमें जो जीव पुरुषार्थसे तत्त्वनिर्णय करनेमें उपयोग लगानेका अभ्यास
रखें उनकी विशुद्धता बढ़ेगी; उससे कर्मोंकी शक्ति हीन होगी, कुछ कालमें अपने आप
दर्शनमोहका उपशम होगा; तब तत्त्वोंकी यथावत् प्रतीति आयेगी। सो इसका तो कर्तव्य
तत्त्वनिर्णयका अभ्यास ही है, इसीसे दर्शनमोहका उपशम तो स्वयमेव होता है; उसमें जीवका
कर्तव्य कुछ नहीं है।
तथा उसके होने पर जीवके स्वयमेव सम्यग्दर्शन होता है। और सम्यग्दर्शन होने
पर श्रद्धान तो यह हुआ कि ‘मैं आत्मा हूँ, मुझे रागादिक नहीं करना’; परन्तु चारित्रमोहके
उदयसे रागादिक होते हैं। वहाँ तीव्र उदय हो तब तो विषयादिमें प्रवर्तता है और मन्द
उदय हो तब अपने पुरुषार्थसे धर्मकार्योमें व वैराग्यादि भावनामें उपयोगको लगाता है; उसके
निमित्तसे चारित्रमोह मन्द हो जाता है;
ऐसा होने पर देशचारित्र व सकलचारित्र अंगीकार
करनेका पुरुषार्थ प्रगट होता है। तथा चारित्रको धारण करके अपने पुरुषार्थसे धर्ममें
परिणतिको बढ़ाये वहाँ विशुद्धतासे कर्मकी शक्ति हीन होती है, उससे विशुद्धता बढ़ती है
और उससे कर्मकी शक्ति अधिक हीन होती है। इसप्रकार क्रमसे मोहका नाश करे तब सर्वथा
परिणाम विशुद्ध होते हैं, उनके द्वारा ज्ञानावरणादिक नाश हो तब केवलज्ञान प्रगट होता
है। पश्चात् वहाँ बिना उपाय अघाति कर्मका नाश करके शुद्ध सिद्धपदको प्राप्त करता है।
इसप्रकार उपदेशका तो निमित्त बने और अपना पुरुषार्थ करे तो कर्मका नाश होता
है।