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શ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢશ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢ - - ૩૬૪૨૫૦
३१४ ] [ मोक्षमार्गप्रक ाशक
मोक्ष होता है और उनके न होने पर सर्वथा मोक्ष नहीं होता। – ऐसे यह कारण कहे, उनमें
अतिशयपूर्वक नियमसे मोक्षका साधक जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रका एकीभाव सो मोक्षमार्ग
जानना। इन सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्रमें एक भी न हो तो मोक्षमार्ग नहीं होता।
वही ‘सूत्रमें’ कहा हैः – ‘‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।।’’ (तत्त्वार्थसूत्र १ – १)
इस सूत्रकी टीकामें कहा है कि यहाँ ‘‘मोक्षमार्गः’’ ऐसा एकवचन कहा, उसका अर्थ
यह है कि तीनों मिलने पर एक मोक्षमार्ग है, अलग-अलग तीन मार्ग नहीं हैं।
यहाँ प्रश्न है कि असंयत सम्यग्दृष्टिके तो चारित्र नहीं है, उसको मोक्षमार्ग हुआ है
या नहीं हुआ है?
समाधानः – मोक्षमार्ग उसके होगा, यह तो नियम हुआ; इसलिये उपचारसे इसके मोक्षमार्ग
हुआ भी कहते हैं; परमार्थसे सम्यक्चारित्र होने पर ही मोक्षमार्ग होता है। जैसे – किसी पुरुषको
किसी नगर चलनेका निश्चय हुआ; इसलिये उसको व्यवहारसे ऐसा भी कहते हैं कि ‘यह
उस नगरको चला है’; परमार्थसे मार्गमें गमन करने पर ही चलना होगा। उसी प्रकार
असंयतसम्यग्दृष्टिको वीतरागभावरूप मोक्षमार्गका श्रद्धान हुआ; इसलिये उसको उपचारसे
मोक्षमार्गी कहते हैं; परमार्थसे वीतरागभावरूप परिणमित होने पर ही मोक्षमार्ग होगा। तथा
प्रवचनसारमें भी तीनोंकी एकाग्रता होने पर ही मोक्षमार्ग कहा है। इसलिये यह जानना कि
तत्त्वश्रद्धान-ज्ञान बिना तो रागादि घटानेसे मोक्षमार्ग नहीं है और रागादि घटाये बिना
तत्त्वश्रद्धान-ज्ञानसे भी मोक्षमार्ग नहीं है। तीनों मिलने पर साक्षात् मोक्षमार्ग होता है।
अब, इनका निर्देश, लक्षणनिर्देश और परीक्षाद्वारसे निरूपण करते हैंः –
वहाँ ‘सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र मोक्षका मार्ग है’ – ऐसा नाम मात्र कथन वह
तो ‘निर्देश’ जानना।
तथा अतिव्याप्ति, अव्याप्ति, असम्भवपनेसे रहित हो और जिससे इनको पहिचाना जाये
सो ‘लक्षण’ जानना; उसका जो निर्देश अर्थात् निरूपण सो ‘लक्षणनिर्देश’ जानना।
वहाँ जिसको पहिचानना हो उसका नाम लक्ष्य है, उसके सिवा औरका नाम अलक्ष्य
है। सो लक्ष्य व अलक्ष्य दोनोंमें पाया जाये, ऐसा लक्षण जहाँ कहा जाये वहाँ अतिव्याप्तिपना
जानना। जैसे – आत्माका लक्षण ‘अमूर्तत्त्व’ कहा; सो अमूर्तत्त्वलक्षण लक्ष्य जो आत्मा है उसमें
भी पाया जाता है और अलक्ष्य जो आकाशादिक हैं उनमें भी पाया जाता है; इसलिये यह
‘अतिव्याप्त’ लक्षण है। इसके द्वारा आत्माको पहिचाननेसे आकाशादिक भी आत्मा हो जायेंगे;
यह दोष लगेगा।