Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३२२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहा। जो पहले श्रद्धान किया था, उसको झूठ जाना होता तो वहाँ
अप्रतीति होती; सो तो जैसा सप्त तत्त्वोंका श्रद्धान छद्मस्थके हुआ था, वैसा ही केवली
सिद्ध भगवानके पाया जाता है; इसलिये ज्ञानावरणादिककी हीनताअधिकता होने पर भी
तिर्यंचादिक व केवलीसिद्ध भगवानके सम्यक्त्वगुण समान ही कहा है।
तथा पूर्व-अवस्थामें यह माना था कि संवरनिर्जरासे मोक्षका उपाय करना। पश्चात्
मुक्त अवस्था होने पर ऐसा मानने लगे कि संवर-निर्जरासे हमारा मोक्ष हुआ। तथा पहले
ज्ञानकी हीनतासे जीवादिकके थोड़े विशेष जाने थे, पश्चात् केवलज्ञान होने पर उनके सर्व
विशेष जाने; परन्तु मूलभूत जीवादिकके स्वरूपका श्रद्धान जैसा छद्मस्थके पाया जाता है वैसा
ही केवलीके पाया जाता है। तथा यद्यपि केवली
सिद्ध भगवान अन्य पदार्थोंको भी प्रतीति
सहित जानते हैं, तथापि वे पदार्थ प्रयोजनभूत नहीं हैं; इसलिये सम्यक्त्वगुणमें सप्त तत्त्वोंका
ही श्रद्धान ग्रहण किया है। केवली
सिद्धभगवान रागादिरूप नहीं परिणमित होते, संसार-
अवस्थाको नहीं चाहते; सो यह इस श्रद्धानका बल जानना।
फि र प्रश्न है कि सम्यग्दर्शनको तो मोक्षमार्ग कहा था, मोक्षमें इसका सद्भाव कैसे
कहते हैं?
उत्तरः कोई कारण ऐसा भी होता है जो कार्य सिद्ध होने पर भी नष्ट नहीं होता।
जैसेकिसी वृक्षके किसी एक शाखासे अनेक शाखायुक्त अवस्था हुई, उसके होने पर वह
एक शाखा नष्ट नहीं होती; उसी प्रकार किसी आत्माके सम्यक्त्वगुणसे अनेक गुणयुक्त मुक्त
अवस्था हुई, उसके होने पर सम्यक्त्वगुण नष्ट नहीं होता। इस प्रकार केवली
सिद्धभगवानके
भी तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षण सम्यक्त्व ही पाया जाता है, इसलिये वहाँ अव्याप्तिपना नहीं है।
फि र प्रश्नःमिथ्यादृष्टिके भी तत्त्वश्रद्धान होता हैऐसा शास्त्रमें निरूपण है।
प्रवचनसारमें आत्मज्ञानशून्य तत्त्वश्रद्धान अकार्यकारी कहा है; इसलिये सम्यक्त्वका लक्षण
तत्त्वार्थश्रद्धान कहने पर उसमें अतिव्याप्ति दूषण लगता है?
समाधानःमिथ्यादृष्टिके जो तत्त्वश्रद्धान कहा है, वह नामनिक्षेपसे कहा हैजिसमें
तत्त्वार्थश्रद्धानका गुण नहीं और व्यवहारमें जिसका नाम तत्त्वश्रद्धान कहा जाये वह मिथ्यादृष्टिके
होता है; अथवा आगमद्रव्यनिक्षेपसे होता है
तत्त्वार्थश्रद्धानके प्रतिपादक शास्त्रोंका अभ्यास
करता है, उनका स्वरूप निश्चय करनेमें उपयोग नहीं लगाता हैऐसा जानना। तथा यहाँ
सम्यक्त्वका लक्षण तत्त्वार्थश्रद्धान कहा है, सो भावनिक्षेपसे कहा है। ऐसा गुणसहित सच्चा
तत्त्वार्थश्रद्धान मिथ्यादृष्टिके कदाचित् नहीं होता। तथा आत्मज्ञानशून्य तत्त्वार्थश्रद्धान कहा है
वहाँ भी वही अर्थ जानना। जिसके सच्चे जीव-अजीवादिका श्रद्धान हो उसके आत्मज्ञान कैसे