होता है। वहाँ घाति कर्मोंकी सर्वप्रकृतियोंमें तथा अघाति कर्मोंकी पापप्रकृतियोंमें तो अल्प
कषाय होने पर अल्प अनुभाग बँधता है, बहुत कषाय होने पर बहुत अनुभाग बँधता है;
तथा पुण्य-प्रकृतियोंमें अल्प कषाय होने पर बहुत अनुभाग बँधता है, बहुत कषाय होने पर
थोड़ा अनुभाग बँधता है।
है और उसमें बहुत कालपर्यन्त बहुत उन्मत्तता उत्पन्न करनेकी शक्ति है तो वह मदिरा
अधिकपनेको प्राप्त है; उसी प्रकार बहुत भी कर्मप्रकृतियों के परमाणु हैं और उनमें थोड़े
कालपर्यन्त थोड़ा फल देनेकी शक्ति है तो वे कर्मप्रकृतियाँ हीनताको प्राप्त हैं, तथा थोड़े भी
कर्मप्रकृतियोंके परमाणु हैं और उनमें बहुत कालपर्यन्त बहुत फल देनेकी शक्ति है, तो वे
कर्मप्रकृतियाँ अधिकपनेको प्राप्त हैं।
जानना। जिन्हें बन्ध नहीं करना हो वे कषाय नहीं करें।
यथायोग्य किसी धातुरूप थोड़े और किसी धातुरूप बहुत परमाणु होते हैं। तथा उनमें कई
परमाणुओंका सम्बन्ध बहुत काल रहता है, कइयोंका थोड़े काल रहता है। तथा उन
परमाणुओंमें कई तो अपने कार्यको उत्पन्न करनेकी बहुत शक्ति रखते हैं, कई थोड़ी शक्ति
रखते हैं। वहाँ ऐसा होनेमें कोई भोजनरूप पुद्गलपिण्डको ज्ञान तो नहीं है कि मैं इस
प्रकार परिणमन करूँ तथा और भी कोई परिणमन करानेवाला नहीं है; ऐसा ही निमित्त-
नैमित्तिकभाव हो रहा है, उससे वैसे ही परिणमन पाया जाता है।