Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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२८ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा उस कषाय द्वारा ही उन कर्मप्रकृतियोंमें अनुभाग शक्तिका विशेष होता है।
वहाँ जैसा अनुभागबन्ध हो वैसा ही उदयकालमें उन प्रकृतियोंका बहुत या थोड़ा फल उत्पन्न
होता है। वहाँ घाति कर्मोंकी सर्वप्रकृतियोंमें तथा अघाति कर्मोंकी पापप्रकृतियोंमें तो अल्प
कषाय होने पर अल्प अनुभाग बँधता है, बहुत कषाय होने पर बहुत अनुभाग बँधता है;
तथा पुण्य-प्रकृतियोंमें अल्प कषाय होने पर बहुत अनुभाग बँधता है, बहुत कषाय होने पर
थोड़ा अनुभाग बँधता है।
इस प्रकार कषायों द्वारा कर्मप्रकृतियोंके स्थितिअनुभागका विशेष हुआ; इसलिये
कषायों द्वारा स्थितिबन्ध, अनुभागबन्धका होना जानना।
यहाँ जिस प्रकार बहुत मदिरा भी है और उसमें थोड़े कालपर्यन्त थोड़ी उन्मत्तता
उत्पन्न करने की शक्ति हो तो वह मदिरा हीनपनेको प्राप्त है, तथा यदि थोड़ी भी मदिरा
है और उसमें बहुत कालपर्यन्त बहुत उन्मत्तता उत्पन्न करनेकी शक्ति है तो वह मदिरा
अधिकपनेको प्राप्त है; उसी प्रकार बहुत भी कर्मप्रकृतियों के परमाणु हैं और उनमें थोड़े
कालपर्यन्त थोड़ा फल देनेकी शक्ति है तो वे कर्मप्रकृतियाँ हीनताको प्राप्त हैं, तथा थोड़े भी
कर्मप्रकृतियोंके परमाणु हैं और उनमें बहुत कालपर्यन्त बहुत फल देनेकी शक्ति है, तो वे
कर्मप्रकृतियाँ अधिकपनेको प्राप्त हैं।
इसलिए योगों द्वारा हुए प्रकृतिबन्धप्रदेशबन्ध बलवान् नहीं हैं, कषायों द्वारा किया
गया स्थितिबन्ध अनुभागबन्ध ही बलवान् है; इसलिये मुख्यरूपसे कषायको ही बन्धका कारण
जानना। जिन्हें बन्ध नहीं करना हो वे कषाय नहीं करें।
ज्ञानहीन जड़पुद्गल परमाणुओंका यथायोग्य प्रकृतिरूप परिणमन
अब यहाँ कोई प्रश्न करे किपुद्गल परमाणु तो जड़ हैं; उन्हें कुछ ज्ञान नहीं
हैं; तो वे कैसे यथायोग्य प्रकृतिरूप होकर परिणमन करते हैं?
समाधानःजैसे भूख होने पर मुख द्वारा ग्रहण किया हुआ भोजनरूप पुद्गलपिण्ड
मांस, शुक्र, शोणित आदि धातुरूप परिणमित होता है। तथा उस भोजनके परमाणुओंमें
यथायोग्य किसी धातुरूप थोड़े और किसी धातुरूप बहुत परमाणु होते हैं। तथा उनमें कई
परमाणुओंका सम्बन्ध बहुत काल रहता है, कइयोंका थोड़े काल रहता है। तथा उन
परमाणुओंमें कई तो अपने कार्यको उत्पन्न करनेकी बहुत शक्ति रखते हैं, कई थोड़ी शक्ति
रखते हैं। वहाँ ऐसा होनेमें कोई भोजनरूप पुद्गलपिण्डको ज्ञान तो नहीं है कि मैं इस
प्रकार परिणमन करूँ तथा और भी कोई परिणमन करानेवाला नहीं है; ऐसा ही निमित्त-
नैमित्तिकभाव हो रहा है, उससे वैसे ही परिणमन पाया जाता है।