-
३० ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
हुआ उसके अनन्तर समयमें उन कर्मरूप पुद्गलोंको अनुभाग शक्तिका अभाव होनेसे
कर्मत्वपनेका अभाव होता है, वे पुद्गल अन्य पर्यायरूप परिणमित होते हैं — इसका नाम
सविपाक निर्जरा है।
इस प्रकार प्रति समय उदय होकर कर्म खिरते हैं।
कर्मत्वपनेकी नास्ति होनेके पीछे वे परमाणु उसी स्कंधमें रहें या अलग हो जायें, कुछ
प्रयोजन नहीं रहता। यहाँ इतना जानना किः — इस जीवको प्रति समय अनन्त परमाणु बँधते
हैं; वहाँ एक समयमें बँधे हुए परमाणु आबाधाकालको छोड़कर अपनी स्थितिके जितने समय
हों उनमें क्रमसे उदयमें आते हैं। तथा बहुत समयोंमें बँधे परमाणु जो कि एक समयमें उदय
आने योग्य हैं वे इकट्ठे होकर उदयमें आते हैं। उन सब परमाणुओंका अनुभाग मिलकर जितना
अनुभाग हो उतना फल उस कालमें उत्पन्न होता है। तथा अनेक समयोंमें बँधे परमाणु बंधसमयसे
लेकर उदयसमय पर्यन्त कर्मरूप अस्तित्वको धारण कर जीवसे सम्बन्धस्वरूप रहते हैं।
इसप्रकार कर्मोंकी बन्ध – उदय – सत्तारूप अवस्था जानना। वहाँ प्रतिसमय एक
समयप्रबद्धमात्र परमाणु बँधते हैं तथा एकसमयप्रबद्धमात्रकी निर्जरा होती। ड़ेढ-गुणहानिसे गुणित
समयप्रबद्धमात्र सदाकाल सत्तामें रहते हैं।
सो इन सबका विशेष आगे कर्म अधिकारमें लिखेंगे वहाँसे जानना।
द्रव्यकर्म व भावकर्मका स्वरूप और प्रवृत्ति
तथा इस प्रकार एक कर्म है सो परमाणुरूप अनन्त पुद्गलद्रव्योंसे उत्पन्न किया हुआ
कार्य है, इसलिये उसका नाम द्रव्यकर्म है। तथा मोहके निमित्तसे मिथ्यात्व – क्रोधादिरूप जीवके
परिणाम हैं वह अशुद्धभावसे उत्पन्न किया हुआ कार्य है, इसलिये इसका नाम भावकर्म है।
द्रव्यकर्मके निमित्तसे भावकर्म होता है और भावकर्मके निमित्तसे द्रव्यकर्मका बन्ध होता है।
तथा द्रव्यकर्मसे भावकर्म और भावकर्मसे द्रव्यकर्म — इसी प्रकार परस्पर कारणकार्यभावसे
संसारचक्रमें परिभ्रमण होता है।
इतना विशेष जानना किः — तीव्र - मंद बन्ध होनेसे या संक्रमणादि होनेसे या एककालमें
बँधे अनेककालमें या अनेककालमें बँधे एककालमें उदय आनेमें किसी कालमें तीव्र उदय आये
तब तीव्रकषाय हो, तब तीव्र ही नवीन बन्ध हो; तथा किसी कालमें मन्द उदय आये तब
मन्द कषाय हो, तब मंद ही बन्ध हो। तथा उन तीव्र - मंद कषायों हीके अनुसार पूर्व बँधे
कर्मोंका भी संक्रमणादिक हो तो हो।
इस प्रकार अनादिसे लगाकर धाराप्रवाहरूप द्रव्यकर्म और भावकर्मकी प्रवृत्ति जानना।