पदार्थका स्पर्श किया) शास्त्र जाना, मुझे यह जानना;
विषयोंकी इच्छा पायी जाती है।
परन्तु शक्ति इतनी ही है कि इन्द्रियोंके सन्मुख आनेवाले वर्तमान स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण,
शब्द; उनमेंसे किसीको किंचित् मात्र ग्रहण करे तथा स्मरणादिकसे मन द्वारा किंचित् जाने,
सो भी बाह्य अनेक कारण मिलने पर सिद्ध हो। इसलिए इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती।
ऐसी इच्छा तो केवलज्ञान होने पर सम्पूर्ण हो।
हो रहा है। ऐसा दुःखी हो रहा है कि किसी एक विषयके ग्रहणके अर्थ अपने मरणको
भी नहीं गिनता है। जैसे हाथीको कपटकी हथिनीका शरीर स्पर्श करनेकी, मच्छको बंसीमें
लगा हुआ मांसका स्वाद लेनेकी, भ्रमरको कमल-सुगन्ध सूंघनेकी, पतंगेको दीपकका वर्ण देखनेकी
और हरिणको राग सुननेकी इच्छा ऐसी होती है कि तत्काल मरना भासित हो तथापि मरणको
नहीं गिनते। विषयोंका ग्रहण करने पर उसके मरण होता था, विषयसेवन नहीं करने पर
इन्द्रियों की पीड़ा अधिक भासित होती है। इन इन्द्रियोंकी पीड़ासे पीड़ितरूप सर्व जीव
निर्विचार होकर जैसे कोई दुःखी पर्वतसे गिर पड़े वैसे ही विषयोंमें छलाँग लगाते हैं। नाना
कष्टसे धन उत्पन्न करते हैं, उसे विषयके अर्थ खोते हैं। तथा विषयोंके अर्थ जहाँ मरण
होना जानते हैं वहाँ भी जाते हैं। नरकादिके कारण जो हिंसादिक कार्य उन्हें करते हैं तथा
क्रोधादि कषायोंको उत्पन्न करते हैं।
जैसे खाज-रोगसे पीड़ित हुआ पुरुष आसक्त होकर खुजाता है, पीड़ा न हो तो किसलिये
खुजाये; उसी प्रकार इन्द्रियरोगसे पीड़ित हुए इन्द्रादिक आसक्त होकर विषय सेवन करते हैं।
पीड़ा न हो तो किसलिये विषय सेवन करें?