Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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तीसरा अधिकार ][ ४७
तो अनुभवन है नहीं। तथा मैंने नृत्य देखा, राग सुना, फू ल सूँघे, (पदार्थका स्वाद लिया,
पदार्थका स्पर्श किया) शास्त्र जाना, मुझे यह जानना;
इस प्रकार ज्ञेयमिश्रित ज्ञानका अनुभवन
है, उससे विषयोंकी ही प्रधानता भासित होती है। इस प्रकार इस जीवको मोहके निमित्तसे
विषयोंकी इच्छा पायी जाती है।
वहाँ इच्छा तो त्रिकालवर्ती सर्वविषयोंको ग्रहण करनेकी है। मैं सर्वका स्पर्श करूँ,
सर्वका स्वाद लूँ, सर्वको सूँघूँ, सर्वको देखूँ, सर्वको सुनूँ, सर्वको जानूँ; इच्छा तो इतनी है।
परन्तु शक्ति इतनी ही है कि इन्द्रियोंके सन्मुख आनेवाले वर्तमान स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण,
शब्द; उनमेंसे किसीको किंचित् मात्र ग्रहण करे तथा स्मरणादिकसे मन द्वारा किंचित् जाने,
सो भी बाह्य अनेक कारण मिलने पर सिद्ध हो। इसलिए इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती।
ऐसी इच्छा तो केवलज्ञान होने पर सम्पूर्ण हो।
क्षयोपशमरूप इन्द्रियोंसे तो इच्छा पूर्ण होती नहीं है, इसलिये मोहके निमित्तसे इन्द्रियोंको
अपने-अपने विषय-ग्रहणकी निरन्तर इच्छा होती ही रहती है; उससे आकुलित होकर दुःखी
हो रहा है। ऐसा दुःखी हो रहा है कि किसी एक विषयके ग्रहणके अर्थ अपने मरणको
भी नहीं गिनता है। जैसे हाथीको कपटकी हथिनीका शरीर स्पर्श करनेकी, मच्छको बंसीमें
लगा हुआ मांसका स्वाद लेनेकी, भ्रमरको कमल-सुगन्ध सूंघनेकी, पतंगेको दीपकका वर्ण देखनेकी
और हरिणको राग सुननेकी इच्छा ऐसी होती है कि तत्काल मरना भासित हो तथापि मरणको
नहीं गिनते। विषयोंका ग्रहण करने पर उसके मरण होता था, विषयसेवन नहीं करने पर
इन्द्रियों की पीड़ा अधिक भासित होती है। इन इन्द्रियोंकी पीड़ासे पीड़ितरूप सर्व जीव
निर्विचार होकर जैसे कोई दुःखी पर्वतसे गिर पड़े वैसे ही विषयोंमें छलाँग लगाते हैं। नाना
कष्टसे धन उत्पन्न करते हैं, उसे विषयके अर्थ खोते हैं। तथा विषयोंके अर्थ जहाँ मरण
होना जानते हैं वहाँ भी जाते हैं। नरकादिके कारण जो हिंसादिक कार्य उन्हें करते हैं तथा
क्रोधादि कषायोंको उत्पन्न करते हैं।
वे करें क्या? इन्द्रियोंकी पीड़ा सही नहीं जाती, इसलिये अन्य विचार कुछ आता
नहीं। इसी पीड़ासे पीड़ित हुए इन्द्रादिक हैं; वे भी विषयोंमें अति आसक्त हो रहे हैं।
जैसे खाज-रोगसे पीड़ित हुआ पुरुष आसक्त होकर खुजाता है, पीड़ा न हो तो किसलिये
खुजाये; उसी प्रकार इन्द्रियरोगसे पीड़ित हुए इन्द्रादिक आसक्त होकर विषय सेवन करते हैं।
पीड़ा न हो तो किसलिये विषय सेवन करें?
इस प्रकार ज्ञानावरण-दर्शनावरणके क्षयोपशमसे हुआ इन्द्रियजनित ज्ञान है, वह
मिथ्यादर्शनादिके निमित्तसे इच्छासहित होकर दुःखका कारण हुआ है।