इनसे मेरा भला होगा; परन्तु वे ऐसा उपाय करते हैं जिससे यह अचेत हो जाय।
वस्तुस्वरूपका विचार करनेको उद्यमी हुआ था सो विपरीत विचारमें दृढ़ हो जाता है और
तब विषय-कषायकी वासना बढ़नेसे अधिक दुःखी होता है।
हो तथा विषयकी इच्छा घटे तो थोड़ा दुःखी होता है, परन्तु फि र जैसेका तैसा हो जाता
है; इसलिये यह संसारी जो उपाय करता है वे भी झूठे ही होते हैं।
अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं, कोई किसीके आधीन
नहीं हैं, कोई किसीके परिणमित करानेसे परिणमित नहीं होतीं। उन्हें परिणमित कराना चाहे
वह कोई उपाय नहीं है, वह तो मिथ्यादर्शन ही है।
तो आप ही दुःखी होता है। तथा उसे मुर्दा मानना और यह जिलानेसे जियेगा नहीं ऐसा
मानना सो ही उस दुःखके दूर होनेका उपाय है। उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि होकर पदार्थोंको
अन्यथा माने, अन्यथा परिणमित करना चाहे तो आप ही दुःखी होता है। तथा उन्हें यथार्थ
मानना और यह परिणमित करानेसे अन्यथा परिणमित नहीं होंगे ऐसा मानना सो ही उस
दुःखके दूर होनेका उपाय है। भ्रमजनित दुःखका उपाय भ्रम दूर करना ही है। सो भ्रम
दूर होनेसे सम्यक्श्रद्धान होता है, वही सत्य उपाय जानना।
प्रवर्तता है। सो ही दिखाते हैंः