Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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तीसरा अधिकार ][ ५३
अपने अंगोंसे तथा शस्त्र-पाषाणादिकसे घात करता है। अनेक कष्ट सहनकर तथा धनादि
खर्च करके व मरणादि द्वारा अपना भी बुरा करके अन्यका बुरा करनेका उद्यम करता है
अथवा औरोंसे बुरा होना जाने तो औरोंसे बुरा कराता है। स्वयं ही उसका बुरा होता
हो तो अनुमोदन करता है। उसका बुरा होनेसे अपना कुछ भी प्रयोजन सिद्ध न हो तथापि
उसका बुरा करता है। तथा क्रोध होने पर कोई पूज्य या इष्टजन भी बीचमें आयें तो
उन्हें भी बुरा कहता है, मारने लग जाता है, कुछ विचार नहीं रहता। तथा अन्यका बुरा
न हो तो अपने अंतरंगमें आप ही बहुत संतापवान होता है और अपने ही अंगोंका घात
करता है तथा विषादिसे मर जाता है।
ऐसी अवस्था क्रोध होनेसे होती है।
तथा जब इसके मान कषाय उत्पन्न होती है तब औरोंको नीचा व अपनेको ऊँचा
दिखानेकी इच्छा होती है और उसके अर्थ अनेक उपाय सोचता है। अन्यकी निंदा करता
है, अपनी प्रशंसा करता है व अनेक प्रकारसे औरोंकी महिमा मिटाता है, अपनी महिमा करता
है। महाकष्टसे जो धनादिकका संग्रह किया उसे विवाहादि कार्योंमें खर्च करता है तथा कर्ज
लेकर भी खर्चता है। मरनेके बाद हमारा यश रहेगा ऐसा विचारकर अपना मरण करके
भी अपनी महिमा बढ़ाता है। यदि कोई अपना सन्मानादिक न करे तो उसे भयादिक दिखाकर
दुःख उत्पन्न करके अपना सन्मान कराता है। तथा मान होने पर कोई पूज्य
बड़े हों उनका
भी सन्मान नहीं करता, कुछ विचार नहीं रहता। यदि अन्य नीचा और स्वयं ऊँचा दिखाई
न दे, तो अपने अंतरंगमें आप बहुत संतापवान होता है और अपने अंगोंका घात करता
है तथा विष आदिसे मर जाता है।
ऐसी अवस्था मान होने पर होती है।
तथा जब इसके माया कषाय उत्पन्न होती है तब छल द्वारा कार्य सिद्ध करनेकी
इच्छा होती है। उसके अर्थ अनेक उपाय सोचता है, नानाप्रकार कपटके वचन कहता है,
शरीरकी कपटरूप अवस्था करता है, बाह्य वस्तुओंको अन्यथा बतलाता है, तथा जिनमें अपना
मरण जाने ऐसे भी छल करता है। कपट प्रगट होने पर स्वयंका बहुत बुरा हो, मरणादिक
हो उनको भी नहीं गिनता। तथा माया होने पर किसी पूज्य व इष्टका भी सम्बन्ध बने
तो उनसे भी छल करता है, कुछ विचार नहीं रहता। यदि छल द्वारा कार्यसिद्धि न हो
तो स्वयं बहुत संतापवान होता है, अपने अंगोंका घात करता है तथा विष आदिसे मर
जाता है।
ऐसी अवस्था माया होने पर होती है।
तथा जब इसके लोभ कषाय उत्पन्न हो तब इष्ट पदार्थके लाभकी इच्छा होनेसे उसके
अर्थ अनेक उपाय सोचता है। उसके साधनरूप वचन बोलता है, शरीरकी अनेक चेष्टा करता