Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 46 of 350
PDF/HTML Page 74 of 378

 

background image
-
५६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
छलसे कार्यसिद्धि करना, लोभमें इष्टकी प्राप्ति करना, हास्यमें विकसित होनेका कारण बना
रहना, रतिमें इष्ट संयोगका बना रहना, अरतिमें अनिष्टका दूर होना, शोकमें शोकका कारण
मिटना, भयमें भयका कारण मिटना, जुगुप्सामें जुगुप्साका कारण दूर होना, पुरुषवेदमें स्त्रीसे
रमण करना, स्त्रीवेदमें पुरुषसे रमण करना, नपुंसकवेदमें दोनोंके साथ रमण करना
ऐसे
प्रयोजन पाये जाते हैं।
यदि इनकी सिद्धि हो तो कषायका उपशमन होनेसे दुःख दूर हो जाये, सुखी हो;
परन्तु उनकी सिद्धि इसके किये उपायोंके आधीन नहीं है, भवितव्यके आधीन है; क्योंकि
अनेक उपाय करते हैं, परन्तु सिद्धि नहीं होती। तथा उपाय होना भी अपने आधीन नहीं
है, भवितव्यके आधीन है; क्योंकि अनेक उपाय करनेका विचार करता है और एक भी
उपाय नहीं होता देखते हैं।
तथा काकतालीय न्यायसे भवितव्य ऐसा ही हो जैसा अपना प्रयोजन हो, वैसा ही
उपाय हो, और उससे कार्यकी सिद्धि भी हो जायेतो उस कार्य सम्बन्धी किसी कषायका
उपशम हो; परन्तु वहाँ रुकाव नहीं होता। जब तक कार्य सिद्ध नहीं हुआ था तब तक
तो उस कार्य सम्बन्धी कषाय थी; और जिस समय कार्य सिद्ध हुआ उसी समय अन्य कार्य
सम्बन्धी कषाय हो जाती हैं, एक समयमात्र भी निराकुल नहीं रहता। जैसे कोई क्रोधसे
किसीका बुरा सोचता था और उसका बुरा हो चुका, तब अन्य पर क्रोध करके उसका
बुरा चाहने लगा। अथवा थोड़ी शक्ति थी तब छोटोंका बुरा चाहता था, बहुत शक्ति हुई
तब बड़ोंका बुरा चाहने लगा। उसी प्रकार मान-माया-लोभादिक द्वारा जो कार्य सोचता था
वह सिद्ध हो चुका तब अन्यमें मानादिक उत्पन्न करके उसकी सिद्धि करना चाहता है। थोड़ी
शक्ति थी तब छोटे कार्यकी सिद्धि करना चाहता था, बहुत शक्ति हुई तब बड़े कार्यकी
सिद्धि करनेकी अभिलाषा हुई। कषायोंमें कार्यका प्रमाण हो तो उस कार्यकी सिद्धि होने
पर सुखी हो जाये; परन्तु प्रमाण है नहीं, इच्छा बढ़ती ही जाती है।
यही आत्मानुशासनमें कहा हैः
आशागर्तः प्रतिप्राणी यस्मिन् विश्वमणूपमम्
कस्य किं कियदायाति वृथा वो विषयैषिता।।३६।।
अर्थःआशारूपी गड्ढा प्रत्येक प्राणीमें पाया जाता है। अनन्तानन्त जीव हैं उन सबके
आशा पायी जाती है। तथा वह आशारूपी कूप कैसा है कि उस एक गड्ढेमें समस्त लोक
अणु समान है और लोक तो एक ही है तो अब यहाँ कहो किसको कितना हिस्सेमें आये?
इसलिये तुम्हें जो यह विषयोंकी इच्छा है सो वृथा ही है।