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तीसरा अधिकार ][ ७३
मन द्वारा स्मरणादि होने पर अस्पष्ट जानना कुछ होता है। यहाँ तो जिस प्रकार त्वचा,
जिह्वा इत्यादिसे स्पर्श, रसादिकका — स्पर्श करने पर, स्वाद लेने पर सूँघने – देखने – सुनने पर
जैसा स्पष्ट जानना होता है उससे भी अनन्तगुणा स्पष्ट जानना उनके होता है।
विशेष इतना हुआ है कि — वहाँ इन्द्रियविषयका संयोग होने पर ही जानना होता
था, यहाँ दूर रहकर भी वैसा ही जानना होता है — यह शक्तिकी महिमा है। तथा मन
द्वारा कुछ अतीत, अनागतको तथा अव्यक्तको जानना चाहता था; अब सर्व ही अनादिसे
अनन्तकाल पर्यन्त सर्व पदार्थोंके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावोंको युगपत् जानता है, कोई बिना
जाने नहीं रहा जिसको जाननेकी इच्छा उत्पन्न हो। इस प्रकार यह दुःख और दुःखोंके कारण
उनका अभाव जानना।
तथा मोहके उदयसे मिथ्यात्व और कषायभाव होते थे उनका सर्वथा अभाव हुआ
इसलिये दुःखका अभाव हुआ; तथा इनके कारणोंका अभाव हुआ, इसलिए दुःखके कारणोंका
भी अभाव हुआ है। उन कारणोंका अभाव यहाँ दिखाते हैंः —
सर्व तत्त्व यथार्थ प्रतिभासित होने पर अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यात्व कैसे हो? कोई अनिष्ट
नहीं रहा, निंदक स्वयमेव अनिष्टको प्राप्त होता ही है; स्वयं क्रोध किस पर करें? सिद्धोंसे
ऊँचा कोई है नहीं, इन्द्रादिक स्वयमेव नमन करते हैं और इष्टको पाते हैं; किससे मान करें?
सर्व भवितव्य भासित हो गया, कार्य रहा नहीं, किसीसे प्रयोजन रहा नहीं है; किसका लोभ
करें? कोई अन्य इष्ट रहा नहीं; किस कारणसे हास्य हो? कोई अन्य इष्ट प्रीति करने योग्य
है नहीं; फि र कहाँ रति करें? कोई दुःखदायक संयोग रहा नहीं है; कहाँ अरति करें? कोई
इष्ट-अनिष्ट संयोग-वियोग होता नहीं है; किसका शोक करें? कोई अनिष्ट करनेवाला कारण
रहा नहीं है; किसका भय करें? सर्व वस्तुएँ अपने स्वभाव सहित भासित होती हैं, अपनेको
अनिष्ट नहीं हैं, कहाँ जुगुप्सा करें? कामपीड़ा दूर होनेसे स्त्री-पुरुष दोनेंसे रमण करनेका कुछ
प्रयोजन नहीं रहा; किसलिये पुरुष, स्त्री या नपुंसकवेदरूप भाव हो? — इस प्रकार मोह उत्पन्न
होनेके कारणोंका अभाव जानना।
तथा अन्तरायके उदयसे शक्ति हीनपनेके कारण पूर्ण नहीं होती थी, अब उसका अभाव
हुआ, इसलिये दुःखका अभाव हुआ। तथा अनन्तशक्ति प्रगट हुई, इसलिये दुःखके कारणका
भी अभाव हुआ।
यहाँ कोई कहे कि — दान, लाभ, भोग, उपभोग तो करते नहीं हैं; इनकी शक्ति
कैसे प्रगट हुई?