शक्ति प्रगट हुई कहते हैं। जैसे
कार्य नहीं रहा, इसलिये गमन भी नहीं किया। वहाँ उसके गमन न करने पर भी शक्ति
प्रगट हुई कही जाती है; उसी प्रकार यहाँ भी जानना। तथा उनके ज्ञानादिकी शक्तिरूप
अनन्तवीर्य प्रगट पाया जाता है।
ही था। अब, मोहके नाशसे सर्व आकुलता दूर होने पर सर्व दुःखका नाश हुआ। तथा
जिन कारणोंसे दुःख मान रहा था, वे कारण तो सर्व नष्ट हुए; और किन्हीं कारणोंसे किंचित्
दुःख दूर होनेसे सुख मान रहा था सो अब मूलहीमें दुःख नहीं रहा, इसलिये उन दुःखके
उपचारोंका कुछ प्रयोजन नहीं रहा कि उनसे कार्यकी सिद्धि करना चाहे। उसकी सिद्धि स्वयमेव
ही हो रही है।
आताप आदि थे; परन्तु अब शरीर बिना किसको कारण हों? तथा बाह्य अनिष्ट निमित्त
बनते थे; परन्तु अब इनके अनिष्ट रहा ही नहीं। इस प्रकार दुःखके कारणोंका तो अभाव
हुआ।
इष्ट माननेका प्रयोजन नहीं रहा, इनके द्वारा दुःख मिटाना चाहता था और इष्ट करना चाहता
था; सो अब तो सम्पूर्ण दुःख नष्ट हुआ और सम्पूर्ण इष्ट प्राप्त हुआ।
ही काल तक जीने-मरनेसे सुख मानता था, वहाँ भी नरक पर्यायमें दुःखकी विशेषतासे वहाँ
नहीं जीना चाहता था; परन्तु अब इस सिद्धपर्यायमें द्रव्यप्राणके बिना ही अपने चैतन्यप्राणसे
सदाकाल जीता है और वहाँ दुःखका लवलेश भी नहीं रहा।