Natak Samaysar (Gujarati).

< Previous Page   Next Page >


Page 436 of 444
PDF/HTML Page 463 of 471

 

background image
૪૩૬ સમયસાર નાટક
પદ્ય
પૃષ્ઠ
પદ્ય
પૃષ્ઠ
बंधै करमसौं मूढ ज्यौं
१५७ मिश्र दसा पूरन भई
३७३
ब्रह्मग्यान आकासमैं
४११ मुकितके साधककौं बाधक
१०३
ब्रह्मग्यान–नभ अंत न आवै
४११ मूढ करमकौ करता होवै
१५६
मूढ मरम जानैं नही
२७२
भयौ ग्रंथ संपूरन भाखा
४०९ मुनि महंत तापस तपी
२२
भयौ सुध्द अंकूर गयौ
२४० मुरखकै घट दुरमति भासी
२७८
भावकरम करतव्यता
२५४ मृषा मोहकी परनति फैली
२९१
भाव पदारथ समय घन
१९
मैं करता मैं कीन्ही कैसी
१८८
भेदग्यान आरासौं दुफारा करै
२१२ मैं कीनौं मैं यौं करौं
२८९
भेदग्यान तबलौं भलौ
१२६ मैं त्रिकाल करनीसौं न्यारा
२९२
भेदग्यान संवर जिन्ह पायौ
१२६ मोख चलिवेकौ सौंन करमकौ
१२
भेदग्यान साबू भयौ
१२७ मोख सरुप सदा चिनमूरति
१०१
भेदग्यान संवरनिदान निरदोष
१२५ मोह मद पाइ जिनि संसारी
१७२
भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट
मोह महातम मल हर
१५२
भेदि मिथ्यात सु बेदि महारस
१२४
भेषधरि लोकनिकौं बंचै सो
२९९ यथा जीव करता न कहावै
२४६
भेषमैं न ग्यान नहि ग्यान गुरु
२९८ यथा सूत संग्रह विन
२६२
भैया जगवासी तू उदासी व्हैकैं
५६ यह अजीव अधिकारकौं
६७
यह एकन्त मिथ्यात पख
२५७
मनवचकाया करमफल
२८९ यह निचोर या ग्रंथको
११७
महा धीठ दुखकौ वसीठ
७४ यह पंचम गुनथानकी
३९१
महिमा सम्यकज्ञानकी
१३१ यह सयोगगुनथानकी
४०५
माटी भूमि सैलकी सो संपदा
२२९ या घटमैं भ्रमरुप अनादि
६३
माया छाया एक है
३३९ याहौंं नर–पिंडमैं विराजै
२०३
मांसकी गरंथि कुच कंचन–कलस
४१५ याही वर्तमानमै भव्यनिकौ
४२
मिथ्यामति गंठि–भेद जगी
३८२
मिथ्यावंत कुकवि जे प्रानी
४१५ रमा संख विष घनु सुरा
३४९