Natak Samaysar (Gujarati).

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પદ્યોની વર્ણાનુક્રમણિકા ૪૩૭
પદ્ય
પૃષ્ઠ
પદ્ય
પૃષ્ઠ
रविकै उदोत अस्त होत दिन दिन १८९ वस्तु स्वरुप लखै नही
४१४
राग विरोध उदै जबलौं तबलौं
२७४ वह कुबिजा वह राधिका
२८२
राग विरोध विमोह मल
११४ वानी जहां निरच्छरी
४०४
राणाकौसौ बाना लीनै आपा साधै
२१५ वानी लीन भयौ जग डोलै
४१३
राम–रसिक अर राम–रस
२३२ विनसि अनादि असुद्धता
३५२
रूपकी न झांक हीयैं करमकौ
१९१ विभाव सकति परनतिसौं विकल
३६०
रूपकी रसीली भ्रम कुलफकी
२८१ विवहार–द्रष्टिसौं विलोकत
८५
रूपचंद पंडित प्रथम
४१८ विसम भाव जामैं नहीं
३४८
रूप–रसवंत मूरतीक एक पुद्गल
६१
वेदनवारौ जीव
१६३
रेतकीसी गढी किधौं मढी है
१९८
रे रुचिवंत पचारि कहै गुरु
२०४ शिष्य कहै प्रभु तुम कह्यौ
२५३
शिष्य कहै स्वामी जीव
३१४
लक्ष्मी सुबुद्धि अनुभूति कउस्तुभ
३४८ शुद्धनय निहचै अकेलौ आपु
३०
लज्जावंत दयावंत प्रसंत
३८३ शोभित निज अनुभूति जुत
२५
लहिये और न ग्रंथ उदधिका
४०९ श्रवन कीरतन चिंतवन
२१७
लियैं द्रिढ पेच फिरै लोटन
१९१
लीन भयौ विवहारमैं
१४४ षट प्रतिमा तांई जघन
३९०
लोकनिसौं कछु नातौ न तेरौ
३३९ षट् सातैं आठैं नवैं
४०१
लोक हास भय भोग रूचि
३७८
लोकालोक मान एक सत्ता है
२२५ सकल–करम–खल–दलन
सकल वस्तु जगमैं असहाई
२६९
वचन प्रवांन करैं सुकवि
४१६ तरंज खेलै राधिका
२८४
वरतै ग्रंथ जगत हित काजा
३०९ सत्तर लाख किरोर मित
३९१
वरनादिक पुदगल–दसा
५९
सत्त्यप्रतीति अवस्था जाकी
३७५
वरनादिक रागादि यह
५८ सदगुरु कहै भव्यजीवनिसौं
३४
वरनी संवरकी दसा
१३० सदा करमसौं भिन्न
१९३
वस्तु विचारत ध्यावतैं
१३
सबदमांहि सतगुरु कहै
३४१