षण्णां द्रव्याणां प्रदेशलक्षणसंभवप्रकारकथनमिदम् । षट्द्रव्यरूपी रत्नोनी माळा भव्योना कंठना आभरणने अर्थे बहार काढी छे. ५१.
अन्वयार्थः[मूर्तस्य] मूर्त द्रव्यने [संख्यातासंख्यातानंतप्रदेशाः] संख्यात, असंख्यात अने अनंत प्रदेशो [भवन्ति] होय छे; [धर्माधर्मयोः] धर्म, अधर्म [पुनः जीवस्य] तेम ज जीवने [खलु] खरेखर [असंख्यातप्रदेशाः] असंख्यात प्रदेशो छे.
[लोकाकाशे] लोकाकाशने विषे [तद्वत्] धर्म, अधर्म तेम ज जीवनी माफक (असंख्यात प्रदेशो) छे; [इतरस्य] बाकीनुं जे अलोकाकाश तेने [अनंताः देशाः] अनंत प्रदेशो [भवन्ति] छे. [कालस्य] काळने [कायत्वं न] कायपणुं नथी, [यस्मात्] कारण के [एकप्रदेशः] ते एकप्रदेशी [भवेत्] छे.
टीकाःआमां छ द्रव्योना प्रदेशनुं लक्षण अने तेना संभवनो प्रकार कहेल छे. (अर्थात् आ गाथामां प्रदेशनुं लक्षण तेम ज छ द्रव्योने केटला केटला प्रदेश होय छे ते कह्युं छे).