Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 53.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
अजीव अधिकार
[ ७३
पुद्गलद्रव्यं मूर्तं मूर्तिविरहितानि भवन्ति शेषाणि
चैतन्यभावो जीवः चैतन्यगुणवर्जितानि शेषाणि ।।३७।।

अजीवद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोयम्

तेषु मूलपदार्थेषु पुद्गलस्य मूर्तत्वम्, इतरेषाममूर्तत्वम् जीवस्य चेतनत्वम्, इतरेषामचेतनत्वम् स्वजातीयविजातीयबन्धापेक्षया जीवपुद्गलयोरशुद्धत्वम्, धर्मादीनां चतुर्णां विशेषगुणापेक्षया शुद्धत्वमेवेति

(मालिनी)
इति ललितपदानामावलिर्भाति नित्यं
वदनसरसिजाते यस्य भव्योत्तमस्य
सपदि समयसारस्तस्य हृत्पुण्डरीके
लसति निशितबुद्धेः किं पुनश्चित्रमेतत
।।५३।।

अन्वयार्थः[पुद्गलद्रव्यं] पुद्गलद्रव्य [मूर्तं] मूर्त छे, [शेषाणि] बाकीनां द्रव्यो [मूर्तिविरहितानि] मूर्तत्व रहित [भवन्ति] छे; [जीवः] जीव [चैतन्यभावः] चैतन्यभाववाळो छे, [शेषाणि] बाकीनां द्रव्यो [चैतन्यगुणवर्जितानि] चैतन्यगुण रहित छे.

टीकाःआ, अजीवद्रव्य संबंधी कथननो उपसंहार छे.

ते (पूर्वोक्त) मूळ पदार्थोमां, पुद्गल मूर्त छे, बाकीना अमूर्त छे; जीव चेतन छे, बाकीना अचेतन छे; स्वजातीय अने विजातीय बंधनी अपेक्षाथी जीव तथा पुद्गलने (बंध- अवस्थामां) अशुद्धपणुं होय छे, धर्मादि चार पदार्थोने विशेषगुणनी अपेक्षाथी (सदा) शुद्धपणुं ज छे.

[हवे आ अजीव अधिकारनी छेल्ली गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहे छेः]

[श्लोकार्थः] ए रीते ललित पदोनी पंक्ति जे भव्योत्तमना वदनारविंदमां सदा शोभे छे, ते तीक्ष्ण बुद्धिवाळा पुरुषना हृदयकमळमां शीघ्र समयसार (शुद्ध आत्मा) प्रकाशे छे. अने एमां शुं आश्चर्य छे? ५३.

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