इति सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ अजीवाधिकारो द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ।।
आ रीते, सुकविजनरूपी कमळोने माटे जेओ सूर्य समान छे अने पांच इन्द्रियोना फेलाव रहित देहमात्र जेमने परिग्रह हतो एवा श्री पद्मप्रभमलधारिदेव वडे रचायेली नियमसारनी तात्पर्यवृत्ति नामनी टीकामां (अर्थात् श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री नियमसार परमागमनी निर्ग्रंथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित तात्पर्यवृत्ति नामनी टीकामां) अजीव अधिकार नामनो बीजो श्रुतस्कंध समाप्त थयो.
७४ ]नियमसार