Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 42.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
चउगइभवसंभमणं जाइजरामरणरोगसोगा य
कुलजोणिजीवमग्गणठाणा जीवस्स णो संति ।।४२।।
चतुर्गतिभवसंभ्रमणं जातिजरामरणरोगशोकाश्च
कुलयोनिजीवमार्गणस्थानानि जीवस्य नो सन्ति ।।४२।।

इह हि शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धजीवस्य समस्तसंसारविकारसमुदयो न समस्ती- त्युक्त म्

द्रव्यभावकर्मस्वीकाराभावाच्चतसृणां नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवत्वलक्षणानां गतीनां परिभ्रमणं न भवति नित्यशुद्धचिदानन्दरूपस्य कारणपरमात्मस्वरूपस्य द्रव्यभाव- कर्मग्रहणयोग्यविभावपरिणतेरभावान्न जातिजरामरणरोगशोकाश्च चतुर्गतिजीवानां कुल-


तत्त्वना अभ्यासमां निष्णात चित्तवाळा मुनीश्वर भवथी विमुक्त थवा अर्थे ते सघळाय शुभ कर्मने छोडो अने *सारतत्त्वस्वरूप एवा उभय समयसारने भजो. एमां शो दोष छे? ५९.

चउगतिभ्रमण नहि, जन्म मरण न, रोग शोक जरा नहीं,
कुळ, योनि के जीवस्थान मार्गणस्थान जीवने छे नहीं. ४२.

अन्वयार्थः[जीवस्य] जीवने [चतुर्गतिभवसंभ्रमणं] चार गतिना भवोमां परिभ्रमण [जातिजरामरणरोगशोकाः] जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, [कुलयोनिजीवमार्गणस्थानानि च] कुळ, योनि, जीवस्थानो अने मार्गणास्थानो [नो सन्ति] नथी.

टीकाःशुद्ध निश्चयनये शुद्ध जीवने समस्त संसारविकारनो समुदाय नथी एम अहीं (आ गाथामां) कह्युं छे.

द्रव्यकर्म तथा भावकर्मनो स्वीकार नहि होवाथी जीवने नारकत्व, तिर्यंचत्व, मनुष्यत्व अने देवत्वस्वरूप चार गतिओनुं परिभ्रमण नथी.

नित्यशुद्ध चिदानंदरूप कारणपरमात्मस्वरूप जीवने द्रव्यकर्म तथा भावकर्मना ग्रहणने योग्य विभावपरिणतिनो अभाव होवाथी जन्म, जरा, मरण, रोग अने शोक नथी.

* समयसार सारभूत तत्त्व छे.

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